SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हितकारी निज वस्तु है, पर से. वह नहीं होय । पर की ममता मेट कर लीन निजातम होय ।। हिन्दी अनुवाद सहित 8 % * ***** ४१ रूपसुन्दरी – मयणा ! आज तू पराई बन हमें छोड़ चली। अपनी प्यारी बेटी की चिदा में रानी की आँखें प्रेम के मोती बिखेर कर रह गईं । चारों ओर अंधेरा छा गया । कुष्टी लोग अब क्यों सुनने लगे, वे तो अपना काम पटा सीधे अपने स्थान पर आ पहुँचे । परमात बड़े रंग लंगरो समा गई सनविधि बन्न की | वर वधू के मिलन का यह प्रथम अवसर था । मयणासुन्दरी पतिसेवा के लिये उत्सुक थीं। ढाल-छठी (तर्ज - कोईक पर्वत धुंधलो रे लो) उबर मन मां चिंतवे रे लो, धिक् धिक् मुज अवतार रे छबीली। मुज संगत थी विणसशे रे लो, एहवी अद्भूत नार रे रंगीली ॥१॥ सुन्दरी हनिय विमासजो रे लो, ऊँडो करो आलोच रे छबीली। काज विचारी कीजिये रे लो, जिम न पड़े फरी सोच रे रंगीली ॥२॥ सुन्दरी हजिय बिमासजो रे लो । मुज संगे तुज विणसशे रे लो, सोवन सरखी देह रे छबीली। तू रूपे रंमा जिसी रे लो, कोढ़ी थी श्यो नेह रे रंगीली ॥३॥ सुं० लाज इहाँ मन नाणिये रे लो, लाजे विणशे काज रे छबोली। निज माता चरणे जई रे लो, सुन्दर वर राज रे रंगीली ||४|| सुं० दाम्पत्य जीवन: अगर यह कहा जाय कि सांसारिक सुख का आधा भाग दाम्पत्यसुख है और आधे में बाकी सब, तो यह अतिशयोक्ति न होगी । परन्तु जिस दाम्पत्य की इतनी महिमा है उसका ठीक उपयोग करने के लिये बड़ी चतुराई, विवेक, संयम, और भाग्य की आवश्यकता है । थोड़ी-सी भी गलती दाम्पत्य के सब सुखों पर पानी फेर सकती है, जीवन को नरक बना देती है। ऐसे समय पर बड़ी सावधानी से रहना आवश्यक है। 'जिस प्रकार दाम्पत्य की छोटी छोटी प्रेमभीनी बातें हृदय में गुदगुदी पदा कर असीम आनंद से दिल को हराभरा कर देती है उसी प्रकार छोटी छोटी स्वार्थ या द्वेष भरी बात भी जीवन के आनन्द को किरकिरा कर डालती हैं।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy