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जो सुख की इच्छा तुम्हें. तज दो बातें चार। पर नारी, पर चुगली, पर धन और लबार ।। हिन्दी अनुवाद सहित RR
R ३९ अनोखा दृश्य, विचित्र बातें सहज ही जनता को अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं । राणा के विवाह की बात सुन हजारों लाखों स्त्री-पुरुष रोगियों के साथ चल पड़े । राजमहल के द्वार पर राणा की जय हो ! जय हो !! जयघोष से सारा अकाश गुंज उठा। मयणा ने भूपति कहे रे, ए आयो तुम नाह् । सुख संपूरण अनुभवो रे, कर्मे को विवाह ॥१०॥ चतुर नर०
मयणा मुख नवि पालटे रे, अंश न आणे खेद। ज्ञानी नुं दोउँ हुवे रे, तिहां नहीं किश्यो विभेद ॥११॥ चतुर नर० जेह पिताए पांव नी रे, साखे दोधा कंत । देव परे आराधवो रे, उत्तम मन ए खंत ॥१२॥ चतुर नर० करि प्रणाम निज तात ने रे, वयण विमल मुख रंग । आवी ने ऊभी रही रे, उंबर ने वामांग ॥१३॥ चतुर नर०
प्रजापाल ने अंगुली से संकेत कर कहा-मयणा, ये राणा तुम्हारे स्वामी हैं, अब इनके साथ तू ठीक तरह से अपने भाग्य को परख ले ।
मयणा ने मुस्करा कर कहा—पिताजी, माता पिता पंचों की साक्षी से अपनी कन्या को श्रीमन्त या निधन के घर जहां भी मन चाहे दे दे, कुलीन बालाओं का कर्तव्य है कि वे प्रसभ मन हो जन्म भर अपने पति की सेवा करें, सवारियों के लिये पति ही परमेश्वर है।
उसी समय मयणासुन्दरी ने राणा का कर स्पर्श कर, प्रजापाल से इस कर कहा, पिताजी, प्रणाम । श्री सर्वज्ञ देव ने अपने ज्ञान में जो देखा है वही होकर रहेगा । इसमें चिन्ता की कोई बात नहीं ।
जनता - अरे रे....रे सचमुच यह तो राजा का जमाई बन गया। भगवान भगवान् यह अनमेल संबन्ध कैसा ? देखो ! इसके भी भाग्य हैं। तव उम्बर एणी परे भणे रे, अनुचित ए भूपाल । नघटे कंठे काग ने रे, मुक्ता फला नी माल ॥१४॥ चतुर नर.
राय कहे कन्या तणो रे, कर्मे ए बल कीघ । घणु कडं में एह ने रे, दोष न को में लीध ॥१५॥ चतुर नरक