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जो अपना चाहो मला, तज दो बातें धार । हिंसा चोरी झूठ को, और पराई नार || ३८ -**** **HAARAKSHRA श्रीपाल रास विकृत शरीर को देख नाक-भौं सिकुड़ते, नाक के आगे कपड़ा लगा कहते बड़ी दुर्गन्ध आ रही है, ये यहाँ कहाँ से आ टपके । कोई कहता छी....छी....छी कैसे हैं, सारा शरीर फूट रहा है, मक्खियां भिनभिना रही हैं। क्या महामारी मूर्त रूप धारण कर आई है ? ये कंकाल भूत प्रेत तो नहीं आ घुसे ! मारो मारो भगाओ इनको, ये रोग फैलाएंगे ! चलो अलग हटो। एक सेठजी-भाई कंकर पत्थर मत फको. ये बेचारे भूत, प्रेत, रवर नहीं हैं, हमने शास्त्र में सुना है कि भूत प्रेतादि देवों के पर जमीन से नहीं इते, देव आंख नहीं टिमटिमाते, देव को पसीना नहीं होता, देव के गले की माला कभी नहीं कुमलाती है। ये लोग विपद के मारे दुःखी हैं। जरा शान्ति रखो, किसी को दुत्कारो मत, इनसे पूछो तुम कौन हो ! कहां से आए ? आने का प्रयोजन क्या है ? देखो! इनके पैर धरती पर टिके हैं, इनके शरीर से कोद मर रहा है, मरे को क्या मारना ? ये लोग आपसे कुछ मांगते हैं ? नहीं, तो फिर व्यर्थ ही किसी को क्यों सताना ।
___ नागरिकों ने उन्हें रोक कर पूछा । आपकी सवारी कहां जा रही है ? कोढ़ी-जन के मुखिया ने आगे बढ़ कर बड़ी शान्ति और नम्रता से प्रणाम कर - महानुभावो । इन बच्चों और नागरिकों को बड़ा कष्ट हुआ। हम भूत नहीं ! प्रेत नहीं । चोर लुटेरे नहीं ! हम हैं कर्म- राजा के बंदी । हाय ! हाय !! हमने भवान्तर में महान् पाप किया है ! पूर्व जन्म में किसी को सताया होगा, किसी का अपमान किया होगा, किसी पर झूठा आरोप लगा उसे कलंकित किया होगा, किसी की कमाई में विघ्न किया होगा, किसी के भोग आदि खान-पान, पढ़ने लिखने में धर्म-ध्यान में अंतराय की होगी, किसी के बच्चे का उसके मां-बाप से वियोग कराया होगा, पशु-पंखी को पिंजरे में गाड़े में बंद कर कष्ट दिया होगा, विश्वासघात कर किसी को हुवाया होगा, उसीका यह प्रत्यक्ष फल भोग रहे हैं। भगवान् ! भगवान् !! हमारी सी दुर्दशा किसी और की न हो ! चतुर मनुष्यों को चाहिए कि वे कर्मबंधन के कारणों से सदा सावधान रहे। कोढ़ी सरदार की करुण कथा सुन नागरिक-जन का हृदय भर आया। वे अपने नगरनिवासियों की निर्विवेकता पर बहुत लज्जित हुए । आपने कैसे कृपा की? कोही सरदार - हम उम्बर राणा को व्याइने आए हैं। कुछ लोगों ने कोढ़ी सरदार की बात पर विश्वास न कर कहा, सरदारजी ! अच्छा, राणा की बरात कहां ठहरेगी? कोढ़ी सरदार - महाराजा प्रजापाल की राज-सभा में । सभी नागरिकों ने एक साथ – वाइ साहब वाह ! आपने व्याईजी तो ठीक ढूंढ़े ! क्या बात कहना ! असंभव बात सुन लोगों को बहुत आश्चर्य हुआ । घर घर यही चर्चा होने लगी। कई लोग कोही सरदार को संबोधन कर कहते थे, भाई जल्दी करा, कहीं राणा के लग्न चूक न जाय ।।