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________________ इन्दता को धारण करो, तज दो खोटी चाल । बिना नाम भगवान के, काटो भव का जाल । हिन्यो अनुवाद सहित ३७ पांडेजी - भाई इनकी व्यथा तो मुक्त से देखी नहीं जाती है । रोना आता है, देखो ! बेचारों की हड्डियां निकल आई हैं, ढोल सा पेट फूल रहा है, दराद सुजालने खुजालते रक्त बहने लगा, मक्खियां घावों को नोच रही हैं, बेचारे कोड़ी अपने सड़े गले हाथों से उन्हें भगाने की चेष्टा करते हैं किन्तु फिर भी कर्म-राजा की सेना के समान मक्खियां बारबार लौटकर उन पर टूट पड़ती हैं । रोगों को कोई न्यौता देने नहीं जाता है, किन्तु फिर भी अनेक प्रकार के रोग बिना निमंत्रण के ही मानव को चारों ओर से आ घेरते हैं । " कर्म को किसी की शर्म नहीं" सत्पुरुषों का अभिप्राय है कि संचित शुभ-अशुभ कर्म भोगना ही पड़ते हैं । जो जैसी करणी करे भुगते अपने आप । करणी का फल पायगा कौन बेटा? कौन नाप ? | जागीरदार - हाँ ! वजन को तो आपस में एक दूसरा ले भी सकता है, किन्तु पूर्वसंचित, अपने बांधे हुए कर्मों में बटवारा कसे हो सकता है ? चहुटा मांहे चालतां रे, सोर करे सय सात । लोक लाख जोवा मल्यां रे, एह किश्यो उत्पात ॥६॥ चतुर नर० ... ढोर धसे कुतर भसे रे, धिक धिक कहे मुख वाच। । जन पूछे तमे कोण छो रे, भूत के प्रेत पिशाच ॥७॥ चतुर नर० कहे रोगी तुम राय नी रे, पुत्री रूप निधान । ते अम राणो परणशे रे, एह जाए तस जान ||८|| चतुर नर० नगर लोक साथे थया रे, कौतुक जोवा काज । - उम्बर राणो आवियो रे, जहाँ वेठा महाराज ॥६॥ चतुर नर० · उम्बर राणा (श्रीपाल)को सवारी नगर के द्वार पर पहुंचते ही, चारों ओर से कुत्त भौकने लगे, कोढ़ियों का कोलाहल सुन, पशु गाय, बैल, घोड़ें आदि भड़कने लगे, कोढ़ी लोगों की डरावनी सूरत देख मारे भय के छोटे छोटे बच्चे दूर दूर भाग, अपने साथियोंसे कहते थे भागोः 'भागो बाबा आया, चिल-बिले लड़के लड़कियां पी पी 'फरे पीपी फुर कर कोढ़ियों को चिढ़ाते, उन पर धूल फेंक कर भाग जाते थे, नर-नारियाँ कोढ़ी जन के
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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