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________________ सर्व द्रव्य निज भाव में मते एक ही रूप। या सत्य प्रासाव से, जीत्र होन शिव भूप ।" हिन्दी अनुवाद सहित * ** ******* * *** ३५ ___ क्या कुलीन कन्याएं यह कहेंगी कि मैं.......साथ ही " विवाह करूंगी" ? मर्यादा का अतिक्रम करना सन्नारियों का धर्म नहीं । जो कि निरंकुश हो कुलटा के समान अपनी इच्छानुसार पति वरे और त्याग दे। किसी को बनाना और बिगाड़ना मानव के हाथ की बात नहीं | भावी भाव बलवान है। ___ आज कई लड़कियाँ विवाह के बाद अपने सर पर हाथ धर बेचैन हैं, रो गे कर घर भरती है। पतिपत्नी का संबन्ध एक मात्र दिग्दर्शन है, दोनों के हृदय एक दूसरे से कोसों दूर है । वे मानसिक चिन्ताओं से संतप्त हैं। अनेक युवावस्था में विधवा हो एक कोने में बैठ सिसक रहीं हैं। इसे आप क्या कहेगें ? यही तो भाग्य का खेल है। पिताजी ! मेरा आपसे अनुरोध है कि आप इस जंजाल में न पड़े कि जनता का सुखदुःख मेरी कृपा पर ही निर्भर है, यह उचित नहीं। "पिताजी म कगे झुट गुमान" मयणासुन्दरी की निर्भय स्पष्ट बातें सुन जनता चकित हो गई । सभासद - महाराज से क्या कहें : बृद्ध हो बच्चों से क्या वाद विवाद करना ! कोई कहते थे राजकुमारी पड़ी है, पर गुणी नहीं । एक साधारण सी बात पर राजा को क्रोधित कर रही हैं। ढाल-पांचवी (इडर भांगा आंबली रे) गणो ऊंबर तिण समेरे, आव्यो नयरी मांहि । सटित करण सूपड़ जिस्यो रे, छत्र करे शिर छांही चतुर नर कर्म तणी गति जोय कर्मे सुखदुःख होय चतुर नर, कर्मे न छूटे कोय चतुर नर कर्म तणी गति जोय ।।१।। श्वतांगुली चामर घरे रे, अविगत नाम खवास । घोर नाद घोघर स्वरे रे, अरज करे अरदास ||२|| चतुर नर० वेसर असवारी करी रे, रोगी सवि परिवार । बले बावलिए परिवर्यो रे, जिश्यो दग्ध सहकार ॥३॥ चतुर नर०
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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