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गनि जाति चेदादि ने, तन मन जन ममकार । धारे ते बहिरात्मा, भमतो बहु संगार । ३८२ RAHA
SRAMROCK श्रीपाल राह प्रसिद्ध अति लोकप्रिय विजयसेन सूरिजी के महाराज थे। इनके शासन काल में आचार्य । हीरविजयसरिजीके प्रमुख यशस्वी शिष्य महा भाग्यशाली उपाध्याय की निविजयजी के . प्रधान शिष्य रूप रंग में अति सुन्दर विनय विवेक विचक्षण सत्संगी, परम गीतार्थ उपाध्याय श्री विनयविजयजी ने रांधेर नगर (गुजरात) के श्री संघ की विशेष प्रार्थना को मान देकर विक्रम सं. सतरा सो अड़तीस १७३८ में इस श्रीपाल राम को लिखना आरम्भ किया । किन्तु खेद है कि इस ग्रन्थ- की साच सात सौ गाथाए लिखने के
बाद सहसा उनका स्वर्मबास हो गया। कूल कुमाया--किन्तु फूल-की सुवास आज ..-- भी अनेक स्त्री-पुरुषों को उपाध्यायजी की याद दिलाती है।
तास विश्वास भाजन. उस पूरण--प्रेम पवित्र कहायाजी । श्री नविजय विबुध पय सेवक, सुजस विजय उवज्झायाजी ॥ ११ ॥ भाग थाकतो पूरण कीधी, तास वचन संकेते जी । तिणो वली समकिन दृष्टि जे नर, तेह-तणे हित हैतेजी ।।१२।। जे भावे ए भण शे गुणा शे, नस घर मंगल माला जी । बंधुर सिंधुर सुन्दर मन्दिर, मणि मय झाक झभालाजी ॥१३॥ देह सबल स सनेह परिच्छाद, रंग अभंग स्सालाजी । अनुक्रमें तेह महोदय पदवी, लहशे ज्ञान विशाला जी ॥१४॥
उपाध्याय विनय विजयजी के स्वर्गवास के बाद इस श्रीपाल रास को संपूर्ण करने श्रेय स्वर्गीय उपाध्याजी के परम स्नेही श्रीमान पंडित प्रवर नय विजयजी महाराज के विद्वान शिष्य महानैयायिक अनेक ग्रन्थ लेखक यशस्वी उपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज को है। आपने स्वर्गीय विनय विजयजी की आज्ञानुसार जग जन हिताय सिद्धचकाराधक सम्यग्दृष्टि स्त्री-पुरुषों के लिये इस रास के शेप भाग को इतने अच्छे सुन्दर ढंग से लिखा है कि पाठक और श्रीता को बिना प्रशस्ति पढे शायद ही पता चले कि यह रास दो विद्वानों की रचना है। इस रास को जो स्त्री-पुरुष श्रद्धा और भक्ति से सुनेंगे-सुनायेंगे उनके घर में सदा आनन्द मंगल हो उनके द्वार पर हाथी झुलते रहे, वे धन-धान्य मणि-माणक, हीरे पन्ने के आभूषण, हाट-हवेली, स्वास्थ्य लाभ और स्नेही मुविनीत परिवार के साथ फल-फूल कर अन्त में परम पद शिवसुख मोक्ष को प्राप्त होए, यही शुभ कामना ।