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________________ त्रिविध आस्मा जान के तन बहिरातम रूप । हो तू अंतर आत्मा, ध्या परमात्मरूप ॥ हिन्छो अनुनाद सहित RRARREARRRRRRRIER ३८१ हेम सूरि जिन शासन मुद्राये, हेम समान कहाया जी । जाचो हीरो जै प्रभु होता, शासन सोह चढ़ाया जी ॥ २ ॥ तास पेट पूर्वाचल उदयो, दिनकर तुल्य प्रतापी जी । गंगाजल निर्मल जस कीरति, सधले मांही व्यापी जी ॥ ३ ॥ शाह सभा मांहे वाद करी ने, जिन मत थिरता थापी जी। बहु आदर जस शाहे दीधो, बिरुद सवाई आयी जी ॥ ४ ॥ श्री विजय सेन सूरि तस पटधरी, उदय बहु गुण वंता जी। जास नाम दश दिशि छे चावं, जे महिमाए महंता जो ॥५॥ श्री विजय प्रम तस पटधारी, सूरी प्रतापे छाजे जी। एह रासनी रचना कीधी सुंदर तेहने राजेजी ॥६॥ सूरी हीर गुरुनी बहु कीरति, कीर्ति विजय उवज्झाया जी। शिष्य तास श्री विनय विजय वर, वाचक विनय सुगुण सोहाया जी । ७॥ विद्या विनय विवेक विचक्षण, लक्षण लक्षित देहाजी । शोभागी गीतास्थ सारथ, संगत सरवर सनेहाजी ।।८।। संवत सतर अड़तीसा वर से, रही संदेर चोमासे जो। संघ तणी आग्रह थी मांड्यो, रास अधिक उल्लासे जी ॥९॥ सार्ध-सप्तशन गाथा विरची पहेता सुर लोके जी । तेना गुण गाए छे गोरी, मिलि मिलि थोके थो के जी १०॥ वंश परंपराः-श्री तपागच्छ के नन्दन वन में कल्प वृक्ष सदृश मुगल सम्राट अगवर प्रति बोधक, उनके राज्य में चारों और जैन सिद्धान्त और अहिंसा धर्म प्रचारक, कोहिनूर हीरे सम महान प्रतिभाशाली शासन प्रभावक आचार्य हीरविजयसरिजी थे। उनके सम कालिन जैसे हीरे की अगूठी में लगा स्वर्ण ही न हो ऐसे यथा नाम तथा गुण आचाये हेमनीजी थे । पूज्य आचार्य हीरविजयलरिजी महाराज के पट्टालंकार उदीयमान सूर्य सम प्रतिभाशाली, गंगाजल समान अति लोक प्रिय, यशस्वी अगबर की राजसभा के प्रखर वादी जगत गुरु क विरुद्ध से भी अधिक सन्मान्य आचार्य विजयसेनसरिजी के थे उनके पट्टधर जग
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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