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जो कुछ चाहे आत्मा, सर्व सुलभ जग बीच । इसके होते ही तरे, भव दु ख पारागर ।। __ हिन्दी अनुवाद सहित -55-55ARNEKHAR R AHAR ३५
वले रूख धन ठठ, दाध्यां जेह दवे री। कवयण दाध्यां जेह न वले तेह भवे री ॥१२॥
रोष तणे वश गय, शुद्धि बुद्धि सर्व गई * ।
कहे दूत तुझ गय, अम घर आणो जइ री ||१३।। देऊँ राजकुमारी, रूपे रंभा जिसी हैं । दूत तणे मन वात, विस्मय एह वसी में ॥१४॥
किश्यु विमासे मूढ, में जे वात कहो री |
नफरे जगमा तेह, अविचल सांची सही ग ।।१५|| श्री श्रीपालनो रास. चोथी दाल कही। विनय कहे निर्वाण, क्रोधे सिद्धि नहीं ॥१६॥
महाराज प्रजापाल – हां । " एक पंथ दो काज"। इन रोगियों की मांग भी पूर्ण हो जायगी और भयणा भी जीवन पर्यंत याद करेगी कि प्रत्यक्ष भौतिक सुखों को ठुकराने का भविष्य में कैसा परिणाम आता है ? अब तक मयणासुन्दरी राजमहल के रम्य स्थल, सुन्दर वस्त्रालंकार, स्वादिष्ट भोजन, क्रीड़ागण, आदि मनोरंजन के साधनों में पली है, इसे पानी मांगने पर दूध मिलता, अंगुली के संकेत पर सेवक-सेविकाएं नाचा करती थीं । अब कुष्ट रोगी के साथ भूमिशयन, पैदल-गमन, असमय भोजन, मैले वस्त्र, फटे चीथडे, धर्मशाला, सराय के गन्दे वरण्डों चौतरों में वास करेगी नत्र नानी दादी याद आएगी। भयंकर जंगलों में भटकेगी, सर्दी, गर्मी का कटु अनुभव होगा तब छोटा सा मुंह ले, भाग कर आयगी तो मेरी ही शरण । जायगी कहां ? "पिताजी में करो झूठ गुमान" क्या यह शब्द में भूल सकंगा ? कदापि नहीं । दावाग्नि से जले वन-उपवन, वृक्ष वर्षा से फल फूल सकते हैं किन्तु मर्म वचनों से जला हृदय कभी हराभरा. नहीं होने का । तू मुझे सीख देने आई है, देखता हूं। प्रजापाल -- तुम्हें कन्या चाहिए ? विलंब न करो, जाओ शीघ्र ही अपने स्वामी को ले आओ। मैं अपनी कन्या तुम्हारे स्वामी उंबर राणा को व्याह दूंगा।
कुष्टरोगी (स्वगत)-ओह ! यह मैं क्या सुन रहा हूं! क्या सचमुच ही हमारे । राणा के भाग्य जागे! कहीं मैं स्वप्न तो नहीं देख रहा है। नहीं नहीं. ऐसी बात नहीं, सामने सूर्यास्त हो रहा है । कुष्टरोगी- महाराज ! क्षमा करें! हमारे भाग्य में आपकी