SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आत्मज्ञान पाये चना, ममत्त मकल संसार। इसके होते ही तरे, भव दुःख पागवार ॥ ३२RIC-4- 5 AXE श्रीपाल सस पहरेदार सिपाही, उसे लाख मना करना चाहते थे किन्तु कुष्टी के हाथ पैरों से झरता पीप, दुर्बल अस्थिपंजर देह, लड़खड़ाती बोली दयनीय दशा देख करुणा से उनकी जिह्वा स्तब्ध हो गई, वे मृक से चुप-चाप खड़े देखते रहे, कुष्टी को अंदर जाने से मना न कर सके । प्रधान मंत्री कुष्टी को राजा के समक्ष खड़ा देख बहुत कुड़-कुड़ाए, अरे ! नेग इतना साहस ? कुष्टी - हाथ जोड़ प्रणाम कर महाराज की जय हो ! जय हो !! जया हो !'. दीनबन्धु ये दिन किसी को देखने को मिले। हम कौन थे और क्या हो गए । क्या कहें ? कुछ कहा नहीं जाता । राजन् ! हमारी तकदीर ने तो राह बदली कन्तु खेद है कि मालव देश के सुप्रसिद्ध दानवीर महाराज प्रजापाल भी हमें देख किनाग कर रहे हैं, फिर तो हो चुका......हो चुका !! वे नर इस पृथ्वी पर भारत है जो कि शक्तिमान होकर भी समय आने पर किसी का साथ नहीं देते हैं। शी जाचो छो वस्तु; विगते तेह भणोरी । राय कहे अम आज, कीरति काई हणोरी ॥७॥ दून कहे अम राय सघली, ऋद्धि मली रे । राज चट्ट पर गह, कीधी अमे भली री ॥८॥ पण सुकुलिणी एक, कन्या कोई दिये गे । तो तस राणा होये, अम एह हर्ष हिये ॥९॥ प्रजापाल – कहो क्या बात है ? निराश न हो : कुष्टि - महराज! हमें धन-दौलत-भवन-भूमि की चाह नहीं, यह तो आप श्रीमान की अनुकंपा से सर्वत्र उपलब्ध है। हम जहां भी गये, यहां के नागरिकों ने हमें सहयोग दे, तन-मन-धन से हमारी सेवा-शुश्रूषा की, अपनी उदारता का परिचय दिया। अब तो हमें उबर राणा के लिए एक अच्छी सुशील कुलवान कन्या की आवश्यकता है। मन चिन्ते तव गय, मयणाने देऊँ परी । जग मांही राखु कीर्ति, अविचल एह खरी री ||१०|| फल पामे प्रत्यक्ष मयणां कर्म तणां • में । साले हेड़ा मांही क्यणां तेह घणारी ॥११॥
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy