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________________ ठाक दाय आये पिना. होय न निज का लाभ । केवल पांसा फेंकते, नहीं पौ बारह लाम॥ हिन्दी अनुवाद सहित २ २ २ ३१ ढाल-दौश्री ( राग- रामचंद्र के बाग चंयो मोरी रहा रो) मास्ग सन्मुख ताम, उड़े खेह घणी री । पूछे भूपति दृष्टि देई, मंत्री भणे री ॥१॥ कुण आवे छे एह. एवड़ा लोक घणारी । कहे मंत्री रहो दूर, दरिसण एह तण रौ ||२|| ए कुष्टी सय सात, थाई एक मणारी । थापी राजा एक, जाचे गय राणा री ॥३|| मारग मूको जाम. नस्पति दूर टले री । गलितांगुली तस दूत, आवी ताम मले री ॥४॥ उत्तम मारग कांई, जाये दर तजीरी । उज्जेणी ना राय, कीर्ति सजी री ।।५।। निर्मुख आशा भंग, जाचक जास स्यारी । भारभूत जग मांहि निर्गुण तेह कह्यारी ॥६॥ महाराज प्रजापाल - प्रधानजी ! देखो उधर सामने यहुन चल उड़ रही है. चली देखें, यात क्या है ? ये कौन चले आ रहे हैं ? मनुष्य तो बहुत अधिक मालुम होने हैं। प्रधान मंत्री - महाराज ! नहीं नहीं! आप उस ओर न पधारें, यहां जाना उचित नहीं । देखियेगा कितनी मक्सियां भिनभिना रही हैं। बड़ी बुरी दुर्गन्ध आ रही है। ये लुले, लंगड़े. अंघे भयंकर संक्रामक रोग से पीड़ित सात मौ कुटी हैं। एक बालक को अपना नायक राणा बना ये उसके पीछे चारों ओर गांव, नगर शहरों में धूम-फिर कर अपनी आजीविका चलाते हैं। महाराज! जल्दी करियेगा : यहां न ठहरें । महाराज प्रजापाल उसी समय दूसरी ओर मुड़ जाने हैं, इतने में एक कुष्टी नंगे पैर नंगे सिर जिसके हाथ की अगुलियां गल गई हैं, चपटी मी नाक, चांक पैर चिप-चिी आंखें, मैला मा फटा कपड़ा कंधे पर डाले अपने सिर के विम्बर वालों को बुजालता हुआ प्रजापाल के सामने आ खड़ा हुआ ।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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