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कंघल यातु स्वभाव जो, मो है आतम भाव । आत्मभाव जाने बिना, नहीं आने निज नाय ।। * ***
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श्रीपाल राम नागरिक ये जैनी लोग जगत की नीति रीति, जानते तो कुछ हैं नहीं, और यों ही बकवाद करते हैं ! जनता तो ठहरी, जिसके जो मन में आया सो बोलने लगे किन्त मयणासुन्दरी शांत भाव से सब सुनती रहीं । इनका समय है, आज ये जी चाहे मो गोल ले ।
बाप और बेटी मेंब हुत ज्यादा विषमवाद बढ़ चुका था । प्रधान मन्त्री महागज : ॐ ब्याकाल गिन्न्ट है । जयान में पारने की कृपा करें ।
ग्रन्धकार श्रीमान् उपाध्याय विनय विजयजी महाराज कहते हैं कि यह श्रीपाल-गम की तीसरी ढाल सम्पूर्ण हुई । श्रोता एवं पाठकगण दुर्गतिदायक अभिमान से सदा दूर रहें ।
दोहा राजा स्यवाड़ी चढ्यो, सबल मैन्य परिवार । मदमाता मयगल घणां, सहम गमें असवार ॥१॥ सुभट सिपाही सामटा, जिस्या पंचायण सिंह । आयुध आडंबर सहित, अटल अभंग अबीह ॥२॥ वाघा केसरिया किया, रदियाला रजपून । मुछाला मछरायला, योध जिस्या जमदत ॥३॥ पायरिया पंखी परे, उडे अंबर जाम । पंचवरण नेजा नवल, गयण चोक चित्राम ॥४॥ सग्णाइ वाजे सम्स, घूरे घोर निसाण ।
पूर वाहिर नृप आविया. भाला जलहल भाण ||५|| मंध्या के समय महाराज प्रजापाल बड़ी सजधज से बाहर उद्यान में धूमने निकले। उनके साथ चतुरंगिणी सेना, हजारों मदोन्मत हाथी, घोडे रथ पालकी, बडे बड़े शूरवीर योद्धा सिंह-समान, अजोड़ मूंछ मरोढ सेनापति, केशरिया वस्त्रों से सुमजित चोपदार, हाल तलवार, बी, तीर कमान, ले तड़क भड़क से चलने वाली पेटल मेना. राष्ट्रीय ध्वज-रंगबिरंगी पताकाएं, तथा आतंककारी चोर लूटेरे, विद्रोहियों के लिए यमराज के समान चमकीले भाले वाले नवयुवक घुडसवार नगारे-शहनाइयां आदि मबाग की शोभा बढ़ा रहे थे। चारों ओर दर्शक-त्री पुरुषों की अपार भीर थी।