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यह भवसागा अगम है, नाहीं इसका पार । आप सम्हाले महज ही नैया होगी पार ॥ हिन्दी अनुवाद सहित
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0 २ २९ सुव्यवस्था होने पर भी वे बेचारे कर्मवश संग्रहणी, मन्दाग्नि, गेस, अपेन्डिस, खाज-खुजली आदि शारीरिक रोग के कारण उनके उपयोग से वंचित रहते हैं । अतः पिताजी ! आप व्यर्थ ही गर्व न करें ।
जो हठवाद तुझने घणो रे, कर्म उपर एकांत । तो तुझने परणाक्शुं रे, कर्मे आण्यो कंत रे बेटी ॥८॥ भ. मान हण्यो जुओ एणीये रे. माह सभा समक्ष । फल देखाडु एहने रे, सकल प्रजा प्रत्यक्ष रे बेटी ॥९॥ भ.
प्रजापाल – मयणा ! यदि तू कर्म को ही प्रधान मान बैठी हैं, तो याद रखना; हटीली ! तेरा विवाह ऐसे व्यक्ति के साथ करूंगा कि तू आजन्म याद करेगी, और सारा संसार कहेगा कि सभा के समक्ष अपने बाप का अपमान करने का गेमा युग परिणाम होता है । तब तो मेरा नाम प्रजापाल है।
सखी ए शु शिखव्यु रे, अध्यापक अज्ञान । मन्जन लोक लाजे सहरे, देखी ए अपमान रे बेटी ॥१०॥ नगर लोक निदे सह रे, भण्यो एहनुं धूल । जुओ वातनी वातमा रे, पिता कर्यो प्रतिकूल रे बेटी ॥११॥ मिथ्यात्वी कहे जननी रे.. बात सकल विपरीत । जगत नीति जाणे नहीं रे, अबला ने अविनीत रे बेटी ॥१२॥ अवसर पामी रायनो रे, गेष सभावण काज । कहे प्रधान पधारिये रे, स्यबाड़ी महाराज रे बेटी ॥१३॥ रास भलो श्रीपालनी रे, तेहनी त्रीनी दाल । विनय कहे मद परिहरी रे. जेहथीं बहु जंजाल रे बेटी ॥ ४॥ प्रजापाल और मयणासुन्दरी के संबाद से राज-सभा में चारों ओर काना-फूमी होने लगी।
सदस्य - राजकुमारी मयणासुन्दरी ने अध्ययन तो ठीक किया है किन्तु इसमें ममयज्ञना नहीं । इसका अध्ययन वृथा है। कामदार - अजी! बाई साव को क्या कहें? एक साधागण सी बात पर महाराज को अप्रसन्न कर दिया । चोपदार - इसमें गजकुमारी का क्या दोष ? यदि यदाने वाले पंडित ठीक होते तो आज यह दिन क्यों आना? कभी नहीं ।