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कषाय की उपशांतत, मात्र मोक्ष अभिलाष । भव खेद प्राणो दया, त्यां आत्मार्थ निवास ॥ ३०TR AKARISHCHATAR श्रीपाल रास
सच है, इस तरह की मनोवृत्ति से प्रेरित हो कर ही तो आज के युग में अणु बम, राकेट और कीटाणु बम जैसे भयंकर घातक शस्त्रास्त्रों का आविष्कार और निर्माण हो रहा है। किन्तु बाण और संरक्षण के लिए बनाई गई यह आणविक शक्ति ही आज मानसिक अशांति का कारण बन चुकी है।
भगवान महावीर ने स्पष्ट कहा है कि रे मानव ! तू इस शरीर, अपने मित्रों और प्राप्त धन-दौलत, भवन आदि भौतिक साधनों को अपना मान फूला नहीं समाता है, यह तेरा निरा अज्ञान है । इससे त्राण और संरक्षण पाने का जो तेरा तन-तोड़ श्रम है वह सर्वथा निरर्थक है। निःसंदेह यह तेरा नश्वर शरीर एक दिन तुझे धोखा देने वाला। माता-पिता आदि परिवार आपत्ति के समय तेरे दुःख में हाथ बटा न सकेंगे और न यह धनधान्य संपत्ति ही तेरे साथ चलने वाली है | अतः तू "शतं विहाय" श्री सिद्धचक्र की शरण ले । इसके सिवाय कोई किसी का साथी नहीं।
गौतम गणधर-राजन् ! सविधि संपूर्ण नवपद-चिद्धचक्र की आराधना करना सोने में सुगंध है। संभव है, यदि किसी कारणवश मानव के पास इतना लंबा समय और शक्ति न हो तो इन अरिहंत, सिद्ध, आचार्यादि नवपदों में से किसी एक पद की आराधना करने वाला व्यक्ति भी अपनी विशुद्ध विचारधारा के बल से देवपाल आदि अनेक भक्तों के समान एक दिन अपना आत्म-कल्याण कर परम पद-मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
इसी प्रकार राजन् ! आपको इस समय एक नवकारशी (४८ मिनिट के व्रत ) का भी उदय नहीं है फिर भी आप निःसंदेह भविष्य में आने वाली चोवीसी में पद्मनाभ नामक प्रथम तीर्थकर होंगे।
गोतम वचन सुणी इस्या, उठे मगध नरिंद । वधामणी आवीं तदा, आव्या वीर जिणंद ।।७।। देवे समवसरण रच्यु, कुसुम वृष्टि तिहाँ कीध । अवर गाजे दुदभि, वर अशोक सुप्रसिद्ध ॥८॥ सिंहासन माड्युं तिहां, चामर छत्र ढलंत । दिव्य ध्वनि दिये देशना, प्रभु भामंडल वंत ॥९॥ वधामणी देई वांदवा, आव्यो श्रेणिक राय । बांदी बेटो परवदा, उचित थान के आय ॥१०॥