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________________ कोई किया थप रहा, शुष्क ज्ञान भी कोई । माने मारग मोक्ष, उपजे करुणा जोई ।। हिन्दी अनुवाद सहित 4- 5A -NAM N - ३६५ ५ परिग्रह परिमाण वन:-आज संसारमें चारों ओर संघर्ष की जड़ है परिग्रह । परिग्रह सब से बड़ा पाप है । जब तक मानव के हृदय में असीम लोभ-लालच-आशा-तृष्णा कि विषैली गेस (वायु) है तब तक मानव सुख से सो नहीं सकता। यदि आप सुख की नींद सोना और प्रसन्न मन जागना चाहते हैं, तो अनावश्यक परिग्रह से दूर रहें। (१) अपनी आवश्यकता से अधिक या किसी परिवार के व्यक्ति के नाम की ओट में व्यापार, खेती, मकान आदि न रखें। (२) सोना, चांदी, जव्हारात आदि आभूषण्य, नौकर चाकर, गाय, भैंस, रोकड़, सिक्का आदि इतना ही रखें कि जिससे आपको भविष्य में कदापि दुर्यान न हो । (३) अपने दैनिक व्यवहार के वख पात्र, खाद्य पदार्थों का अमुक संख्या में ही अनासक्त भाव से उपयोग करें। ६ दिग्परिमाण व्रतः लोभी मानव तृष्णावश देश-विदेश, ग्राम-नगरों में जीवन भर इधर उधर भटकता ही रहता है। फिर भी उसे संतोष नहीं। अतः इस निरंकुश तृषणा पर अधिकार करना दिग्वत है। व्रतधारी स्त्री-पुरुषों को प्रत्येक दिशा में जाने आने की मर्यादा कर संयम से रहना चाहिये। ७ उपभोग परिमोग परिमाण व्रतः-भोजन और बार-बार काम में आने वाले वस्त्र पात्र शहन आदि का अमुक परिमाण रख संसार के शेष समस्त पदार्थों का त्याग कर देने से मानव सहज ही अनेक पापों से बच सकता है। ८ अनर्थ दण्डः-विवेकशून्य मानव की मनोवृत्ति अकारण व्यर्थ ही सदा कर्म बन्धन करती रहती है इसे अनर्थ दण्ड कहते हैं। इससे बचने के चार उपाय है । (१) अपध्यानः-किसी जीव को कष्ट न दो, उसका कभी बुरा मत सोचो । (२) जाति, कुल, बल, लाभ, धन, ज्ञान, तप, और अपने शरीर की सुन्दरता का अभिमान न करो। (३) हिंसादान-जन संहार शस्त्र अस्त्र विषेले पदार्थ का न निर्माण करो और न किसी को दो। (४) पापोपदेश-अपने स्वार्थ और आनन्द के लिये कदापि किसी को बुरी सलाह न दो और न किसी दुर्जन (गुन्डे) की संगत करो। ९ सामायिक व्रतः-मानव के मन और सिर को प्रफुल्लित बना आध्यात्मिक विकास का ओर आगे बढ़ने का सामायिक एक रामबाण उपाय है। एक सामायिक का समय ४८ मिनट है । इस अल्प काल का सदुपयोग करने वाला मानव बाणु करोड़, उनसाठ लाख, पच्चीस हजार पल्योपम और एक पल्योपम का सातवां या आठवां भाग देवलोक का आयुष्य बांधता है । इतना ही नहीं
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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