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ख्याति लोभ के ही लिये, कष्ट सहे जो लोग । उन छलियों के ढोग से करो नहीं महयोग ॥ ३६४ II ARTHATANE श्रीपाल रास विरोधी हिंसा से यथाशक्ति अवश्य ही बचते रहना चाहिये ।
____ अणुव्रत-१ किसी प्राणी को मार-पीट-दुःख न दें २ किसी को लुला-लंगडा, नकटा, अंधा काणा बना उसको सुंदरता को नष्ट न करें । ३ किसी पशु-परखी, कुत्ते, बिल्ली, सांप, बिच्छु, बंदर आदि प्राणी को बंधनादि कष्ट न दें । ४ गधे-घोड़े, बल, ऊंट, भैसे आदि प्राणी पर उनकी शक्ति से अधिक वजन न लादे । नौकर- चाकर-दास दासियों से उनकी मर्यादा से अधिक काम न लें । ५ अपने अधीन रहने वाले दास-दासी पशुपंखी, परिवार के स्त्री-पुरुषों को समय पर भोजन देना न भूलें । रात्रि भोजन से बचें। अहिंसा-अणुव्रत के साधक मानव को इन पांच दोषों से सावधान रहना चाहिये ।।
२ सत्याणु व्रतः-झूठी साक्षी देना, झूठा लेख-पढ़ करना, चुगलखोरी, गुप्त बातें प्रकट करना, किसी को कु-मार्ग नशे-पत्ते, वेश्यागमनादि के चक्कर में फंसाना आत्मप्रशंसा, पर-निंदा आदि स्थूल-असत्य है । पांच दोष-१ किसी को झूठा कलंक न दें। २ किसी के गुप्त दोष को जनता में प्रकट न करें। ३ अपनी पत्नी, परिवार राष्ट्र आदि के साथ विश्वासघात न करें। ४ किसी को बुरी सलाह न दें। ५ किसी को धोखा दे कर खोटे लेख व लेन-देन न करें। सत्याणु व्रत के साधक मानव को इन पांच दोपों से सदा सावधान रहना चाहिए ।
३ अचौर्याणु व्रतः-मन, वचन और शरीर से किसी की सम्पत्ति को बिना अनुमति के न लेना अचौर्याणु व्रत है। पांच दोप-चोरी का माल न खरीदें । २ चोर को चोरी करने में सहयोग न दें। ३ राज्य विरुद्ध कार्य अर्थात् काला बाजार, करचोरी आदि न करें। ४ किसी को कम न दें और न उसका अधिक लें । ५ किसी शुद्ध पदार्थ में अशुद्ध वस्तु मिला कर जनता को धोखा न दें। अचौर्याणुव्रत के साधक माना को इन पांच दोषों से सदो सावधान रहना चाहिये ।
४ ब्रह्मचर्याणु व्रतः-काम-भोग एक मानसिक विकार है, इसका अंत विषय-भोग से होना असंभव है । शारीरिक-मानसिक बल स्वास्थ्य और आध्यात्मिक विकास के लिये संभोग से बचना ही ब्रह्मचर्य है। इसका विशेष वर्णन इसी मंथ के पृष्ठ ३०४ में पढ़ियेगा । पर-स्त्री स्याग और स्वपत्नी-संतोष ही जीवन है।
१ पासवान:--किसी रखेल से संबंध न रखें । २ कुंवारी, विधवा वेश्या के सामने आँख उठाकर न देखें । ३ दुवारा विवाह न करें किसी दूसरे की सगाई-सगपण की झंझटों में भूल कर न पड़ें। ४ अप्राकृत ढंग से संभोग कर मृत्यु को आमंत्रण न दे । ५ विषय-भोग के दोस न बने । ब्रह्मचर्याणु-व्रत के साधक मानव को इन पांच दोषों से मदा सावधान रहना चाहिए।