________________
मानव वही है जो सम-चित्त, प्रशान्त, क्षमाषान, शील संपन्न और परोपकारी है। हिन्दी अनुवाद सहित RRCHESTRENREE२ ३५९
देव, गुरु, धर्मः-जिस मानव की आत्मा अति उत्कृष्ट त्याग तप की साधना से सर्वत्र, सर्वदर्शी, वीतराग और अनन्त शक्तिमान बन गई है, जिसने मिथ्यात्व, मोह, अज्ञान, निद्रा, काम-विकार, हास्य, रति-अरति आदि अनेक शारीरिक, पुनर्जन्म, मानसिक विकारों पर पूर्ण रूप से विजय प्राप्त कर ली है, जो शुद्ध आत्म स्वरूप का साक्षात्कार कर चुका है वही सु-देव है । जिसे कि अरिहंत भगवान कहते हैं।
प्रश्न-क्या अरिहंत ही सु-देव है, दूसरे नहीं ? उत्तर-अरिहंत के समान ही यदि कोई भी मानव पुनर्जन्म, काम-विकार और राम-द्वेष से मुक्त है तो उसे सु-देव मानने में कोई दोष नहीं । चाहे वह राम, कृष्ण-गोविंद, ब्रह्मा, विष्णु, शंकर-महादेव या अल्लाहअकबर, पयगम्बर ही क्यों न हो।
सु-गुरु-जिस संत-महात्मा श्रमण मुनिराज के जीवन में पंचमहाव्रत अहिंसा, सत्य, अस्तेय, लचर्य और परिग्रह, रात्रि भोजन के त्याग की सुगंध महकती है, जो अपने विशुद्ध आत्म स्वरूप की प्राप्ति के लिये सदा प्रयत्नशील हैं, जो विश्व के समस्त जीवों का कल्याण चाहते हैं, वे ही सु-गुरु हैं।
सु-धर्मः-आत्मा को पूर्णता की ओर ले जाने वाला, तथा तत्त्व का यथार्थज्ञान कराने वाला वीतराग कथिन अनेकांत श्रुत और मुक्ति प्राप्त कराने वाला विशुद्ध चारित्र ही सु-धर्म हैं ।
सम्यग्दृष्टि मानव को अपने विशुद्ध आत्म-स्वरूप का भान होते ही उसके जीवन में एक अनूठा दिव्य परिवर्तन हो जाता है । उसे अपने आत्मिक-आनंद की तुलना में संसार के भौतिक सुख बड़े निरस ज्ञात होते हैं । वह जल-कमल के समान भोग में योग की साधना कर आध्यात्मिक विकास की ओर आगे बढ़ता चला जाता है। सम्यग्दृष्टि मानव के विचार बड़े सरल और सुलझे हुए होते हैं | उसमें कदाग्रह, तथा मत-आग्रह नहीं होता । वह सत्य को ही सर्वोपरि मान उसकी ही उपासना करता है । संसार की कोई भी शक्ति उसे सत्य, धर्म और अचल आत्मविश्वास से डिगा नहीं सकती है। फिर उसे अपने विशुद्ध आत्म-स्वभाव पर अटल पूर्ण श्रद्धा प्रकट होने लगती है-अर्थात् इस प्रकार के शुद्ध आचारविचार मानव की मुक्ति का द्वार खोल देते हैं।
सम्यग्दर्शन के आठ अंगः-(१) निस्संकिय-मानवता का अभिशाप है असत्य माषण । इसका प्रमुख कारण है कषाय और अज्ञान । श्री जिनेन्द्र भगवान अकोधी, अ-मानी, अ-मायी, अ-लोभी निस्पृही, सर्वज्ञ पूर्ण ज्ञानी हैं । अतः उनके वचन-सिद्धान्त सर्वथा सत्य और मान्य