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मन में भगवान का स्मरण बना रहे, और महापुरुष की मर्यादा का उल्लंघन न हो वही समय मार्थक ३५८ 1966 श्रीपाल राम
मूल स्वरूप में स्थिर रहते हैं । एक द्रव्य दूसरा द्रव्य नहीं बनता, किन्तु प्रत्येक द्रव्य अपनी अनादि कालीन पर्याय धारा में प्रवाहित हो रहा है, इस प्रकार प्रत्येक द्रव्य का रूपान्तर होता है किन्तु द्रव्यान्तर नहीं होता । मूल द्रव्य छः है । १ धर्मास्ति काय, २ अधर्मास्ति काय, ३ आकाशास्ति काय ४ पुद्गलास्ति काय, ५ जीवास्ति काय, ६ और काल-तत्व नौ हैं : १ जीव, २ अजीव, ३ पुण्य, ४ पाप, ५ आश्रव, ६ संवर, ७ बंध, ८ निर्जरा और ९ मोक्ष । अनेकान्त दृष्टि ही इन द्रव्यों या तत्त्वों को समझने का सर्वश्रेष्ठ मार्ग है ।
तव श्रद्धा ही सम्यग्दर्शन है । सम्यग्दर्शन कभी-कभी अपनी आत्मविशुद्धि से स्वतः अपने आप और किसी समय सत्संगति से या सद्गुरु के उपदेश से प्राप्त होता है । सम्यग्दर्शन का विरोधी गुण मिथ्यात्व हैं। जो श्रद्धा-विमुख, सत्य - विरुद्ध है, वह मिथ्यात्व अथवा मिथ्यात्व - दर्शन हैं । देव, गुरु और धर्म के विषय में भ्रमपूर्ण या विपरीत धारणा बनाने से मिथ्यात्व की उत्पत्ति होती है । मनुष्य अज्ञानवश यह समझने में असमर्थ हो जाता है कि आराध्य देव कैसे पावन, पवित्र, संपूर्ण ज्ञानी और सर्वथा निर्विकार • अठारह दूषण से मुक्त होना चाहिए ? इस सत्य बात को न समझने के कारण वह मिथ्यात्व के चक्कर में फंस जाता है। शास्त्र के रहस्य का सही अभिप्राय न समझने से या अश्लील गंदे कु-शास्त्र के वाचन स्वाध्याय से शास्त्रीय मिथ्यात्व आता है ।
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कु-गुरु एक अभिशाप है। इससे संसार में मिथ्यात्व फैलता है । मानव वेषधारी ढोंगी साधुओं की लच्छेदार बातें, उनके छल-कपट, यंत्र मंत्र, सट्टे आदि के प्रलोभन में फंस कर सन्मार्ग से राह भटक जाते हैं। दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम " । धर्म का यह अर्थ नहीं कि आप बिना सोचे-समझे अपने कुलाचार, रूढ़ीवाद, अश्रद्धा के पीछे आँखें मूंद कर आपस में एक-दूसरे की धज्जियाँ उड़ाएं, लढू मरे । सभ्यग्दर्शन का अर्थ हैं - सन्मार्ग | बाहर और भीतर समान रहो, आडम्बर से बच विशुद्धाचरण की ओर आगे बढ़ते चलो। मैं अपने अनमोल समय, जीवन, घन और स्वस्थता का दुरुपयोग न कर उसका सदुपयोग ही करूंगा । सुख बाहर नहीं, निश्चित ही मेरी अंतर आत्मा में हैं, ऐसे दृढ संकल्प का होना ही सम्यग्दर्शन हैं ।
*अठारह दूषण:- १ दानांतराय २ लाभांसराय, ३ भोगांतराय ४ उपभोगांत राय, ५ atraराय, ६ हास्य, ७ रति, ८ अरति, ९ भय, १० शोक, ११ जुगुप्सा, १२ राग, १३ द्वेष, १४ मिध्यात्व १५ निवर, १६ काम विकार, १७ अज्ञान, और १८ अव्रत ।