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वीर धीर बन कर रहो, मन तन के बलवान । निर्मल कायर मत बनो, कायर मृतक समान ।। हिन्दी अनुवाद सहित - - -***** **२३५७ की आराधना कर दिन प्रति-दिन आध्यात्मिक विकास कि ओर आगे बढ़ रही हैं उनको हमारा कोटि-कोटि त्रिकाल वंदन हो ।
शुद्ध देव गुरु धर्म परीक्षा, सद्दहणा परिणाम । जेह पामींजे तेह नमीजे, सम्यग्दर्शन नाम रे ॥ भ. सि. ॥२६॥ मल उपशम क्षय उपशम क्षय थी, जे होय त्रिविध अभंग । सम्यग्दर्शन तेह नमिजे, जिन धर्मे दृढ रंग रे ॥ भ. सि. ॥२७॥ पंचवार उपशमिय लहीजे, क्षय उपशामिय अमंख । एकवार शायिक ते समकित, दर्शन नमिये असंख रे ॥ भ. सि. ॥२८॥ जे विण नाण प्रमाण न होये, चारिण तरु नवि फलियो । सुख निर्वाण न जे विण, लहिये समकित दर्शन न बलियो रे।।भ.सि.॥२९॥ सड़सठ्ठ बोले जे अलंकरियो, ज्ञान चारित्रनु मूल | समकित दर्शन ते नित्य प्रणमो, शिव पंथनुं अनुकूल रे ॥भ.सि.॥३०॥
सम्यग्दर्शनः- श्री सिद्धचक्र यंत्र में छट्ठा दर्शन पद है। आत्म विकास की पूर्ण साधना में सम्यग्दर्शन का एक प्रमुख अति-महत्त्वपूर्ण स्थान है। सम्यग्दर्शन के बिना विपुल और सूक्ष्म से सूक्ष्म ज्ञान भी अज्ञान है । अति उत्कृष्ट जप, तप, चारित्र भी काय-क्लेश और भव-भ्रमण के कारण हो सकते हैं। ज्ञान-अनुभूति के बाद यदि मानव में समता, अपनी विशुद्ध-आत्मा की परख, अटल श्रद्धा और विश्वास जागृत नहीं हुआ फिर तो उसका ज्ञान निरर्थक भार स्वरूप ही है। उसे श्रद्धा के बिना न तो अपनेस्वरूप पर और न अपने अधिकार की मर्यादा पर पूर्ण भरोसा होता है और न संसार के अनन्त-अनन्त जड़-चेतन द्रव्यों के स्वतंत्र अस्तित्व पर ही विश्वास होता है। उस अविश्वासी और मिथ्यादी मानव की यही भावना रहती है कि सारा संसार मेरी अंगुली के संकेत पर नाचे, मेरी सत्ता को स्वीकार कर, मेरी आज्ञा का कोई भी उल्लंघन न करे । किन्तु यह तो एक भ्रम मात्र हैं। इस असत्य धारणा ने ही तो आज मानव को दानव बना रखा है।
जगत् में जो सत है उसका कमी विनाश नहीं होता है और जो असत् है उसकी उत्पति नहीं होती। जितने भी मौलिक द्रव्य इस लोक में विद्यमान हैं वे सब अपने