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अपना भला तो सभी चाहते हैं, किन्तु सबका भला चाहे वह मानव नहो, देव है। ३५४HARSANS
-55 श्रीपाल रास जे दिये सारण वारण चोयण, पड़ि चोयण वली जनने । पटधारी गच्छ थंभ आचारज, ते मान्या मुनि मनने रेभ. मि. ॥१४॥ अत्यमिये जिन सूरज केवल, वंदिजे जगदीवो । भुवन पदार्थ प्रगटन पटु ते, आचारय चिरंजीवो रे ॥भ. सि. ||१५||
शासन दीपकः-रे मानव तू श्रीसिद्धचक्र यंत्र में तीसरे पद पर विराजमान अति लोकप्रिय प्रखर वक्ता ज्ञान-दर्शन, चारित्र, तप, वीर्याचार के आराधक और अन्य साधुसाध्वी मंडल को पंच आचार, पंच-महाव्रतों की विशुद्धाराधना करने का प्रोत्साहन-दायक । (१) सारना-प्रसंग और घाव श्राधिकार सम्यग्दर्शन की कहाँ किस प्रकार आराधना करती हैं। इसकी सार संभाल रखने वाले । (२) वारणा-जनता में फैले अशुद्ध शिथिल आचार विचार और उपचारों को दूर करने में सतर्क । (३) चोयणा-श्रीसंघ को आध्यात्मिक विकास, विद्याध्ययन, धर्मध्यान, पवित्र आचार-विचारों की ओर आकृष्ट कर उन्हें प्रगति का सन्मार्ग दर्शक । (४) पडि चोयणा-बार बार भृल करने वाले व्यक्ति को उचित दण्ड प्रायश्चित्त दे उन्हें सप्रेम सन्मार्ग की ओर आगे बढ़ाने में कुशल, सूर्य-चन्द्र के समान लोका-लोक प्रकाशक, तीथेकर-जिनेन्द्रदेव व सामान्य केवली के बाद अज्ञानांधकार नाशकशासनदीपक आचार्य महाराज को चार बार प्रणाम कर सहृदय शांत, दांत, क्रोधादि विकथा बुरी बातों से अलग निस्पृह छत्तीस गुणालंकृत श्रमण-संघ के परम उपकारी गच्छ नायक, स्व-पर दर्शन शास्त्र में निपुण आचार्यदेव दीघार्यु हो । स्वर्ग, मृत्यु, पाताल का परिचय देने में श्रुत-केवली श्री आचार्य महाराज को हमारा कोटि-कोटि त्रिकाल वंदन हो । दादश अंग सज्झाय करे, पारग धारक तास । सूत्र अस्थ विस्तार गसिक ते, नमो उवज्झाय उल्लास रेभ. सि.॥१६॥ अर्थ सूत्र ने न विभागे, आचारय उवज्झाय । भव त्रण्ये लहे जे शिव संपद, नमिये ते सुपसाय रे ॥भ. सि. ॥१७॥ मुख शिष्य निपाइजे प्रभु, पहाण ने पल्लव आणे । ते उवज्झाय सकल जन पूजित सूत्र अस्थ सवि जाणे रे ||भ.सि.॥१८॥ राजकुवर सरिखा गण चिंतक, आचारिज पद जोग । जे उवज्झाय सदा ते नमतां, नावे भव भय शोक रे ॥ भ.सि. ॥१९॥