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भोग आपको छोड़ देते हैं तो दुःख होता है, अच्छा है यदि आप ही उसे लात मार कर सुखी हो जाये । हिन्दी अनुवाद सहित
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बावना चंदन रस सम वयणें सहित ताप सविटाले । ते उवज्झाय नमिजे जे बली, जिनशासन अजुआले रे ॥ भ. सि. ॥२०॥
बावना चन्दनः - रे मानव ! तू श्रीसिद्धचक्रयंत्र के चौथे पद में विराजमान राजकुमार के समान, बारह उपांग के पठन-पाठन में संलग्न, धर्मशास्त्रों के मर्म प्रकाशक, आचार्य की अनुमति से साधु-साध्वियों को सदा वाचना देने में उत्सुक पत्थर-कठोर हृदय शिष्य के हृदय में ज्ञानांकुर प्रकट कर चोटी का ठोस विद्वान बनाने में कुशल, एक विशेष प्रकार के महामंधित बाबा वंदन सनाय, स्वयं के बावन अक्षरों से बनी अपनी प्रभावशाली वक्तृत्व कला से जनता को सम्यग्दर्शन की ओर आकर्षित कर उनके हृदय को शांत करने वाले, समय समय पर आचार्य श्री को श्रीसंघ की प्रगति जनक अभिप्राय देने में प्रधानमंत्री समान, शासन प्रभावक, भवरोग नाशक श्री उपाध्यायजी महाराज को प्रणाम कर । सर्व पापनाशक आगामी तीसरे भव में मोक्षगामी श्री उपाध्यायजी महाराज का हमारा कोटि कोटि त्रिकालवंदन हो ।
जिन तरु फुले भमरो बेसे, पीड़ा तस न उपावे ।
लेइ रस आतम संतोषे, तिम मुनि गोचरी जावे रे ॥ भ. सि.॥२१॥ पंच - इन्द्रि ने कषाय निरूंघे, पद कायक प्रति पाल । संयम सतरे प्रकार आराधे, वंदो तेह दयाल रे ॥ भ. सि. ॥ २२ ॥ अदार सहस शीलांगना घोरी, अचल आचार चरित्र | मुनि महंत जयगा युत वांदी, कीजे जन्म पवित्र रे ॥ भ. सि. १२३॥ नवविध ब्रह्म गुपति जे पाले वारस विह तप शूरा । एवा मुनि नमिये जो प्रकटे पूव पुष्य अंकुरा रे | भ. सि. ॥२४॥ सोना तणी परे परीक्षा दीसे दिन दिन चढते वाने ।
संयम खप करता मुनि नमिये, देश काल अनुमान रे ॥ म. सि. ॥ २५॥
चारह उपांग :- १. अचारोगसूत्र, २. सूत्र कृसांग सूत्र, ३. स्थानांग
४, समवायांग,
५. विवाह वन्नत्ति भगवती सूत्र, ६. ज्ञाताधर्म कथांग ७. उपासक दशांग, ९ अनुत्तरोपपातिक दशांग, १०. प्रश्न व्याकरणांग सूत्र, ११ विपाक सूत्रग, १२. इष्टिवादांग सूत्र ।