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________________ आपका जीवन सिर्फ आपके लिये नहीं है, किन्तु संपर्क में आने वालों के लिये भी है। ३५२%ARASHTRARASHARE श्रोपाल रास समय पए-सतर अण फरसी, चरम तिभाग विशेष । अवगाहन लही जे शिव पहोता, सिद्ध नमो ते अशेष रे ।। भ. सि.॥६॥ पूर्व प्रयोग ने गति परिणामे, बन्ध छेद असंग । समय एक उर्ध्व गति जेहनी, ते सिद्ध प्रणमो रंग रे ॥ भ. सि. ॥७॥ निर्मल सिद्ध शिलाने उपरे, जोयण एक लोकत । सादि अनन्त निहां स्थिति जेहनी, ते सिद्ध प्रणमो संतरे॥भ. सि. ॥८॥ जाणे पण न शके कही पुरगण, प्राकृत तिम गुण जास । उपमा विण नाणी भव मांहे, ते सिद्ध दियो उल्लास रे । भ. मि. ॥९॥ ज्योति शुं ज्योति मिली जस अनुपम, विस्मी सकल उपाधि । आतमराम रमापति समगे, ते सिद्ध सहज समाधि रे॥ भ. सि.॥१०॥ सिद्ध-पद :-परम तारक श्री अरिहंत भगवान सयोगी-केवली गुणस्थान से आगे बढ़कर जब अयोगी गुणस्थान प्रवेश में करते हैं, उस समय "अ उ ऋ लू" इन पांच स्वरों को मध्यम स्वर से बोलने में जितना समय लगता है, बस उतने ही समस में वे अपने मानव देह का तीसरा भाग कम () की अगवाह न कर अशरीरी-सिद्ध अर्थात् वे पूर्ण मुक्त बन जाते हैं। प्रश्न-अरिहंत भगवान जब संपूर्ण कर्मों को क्षय कर अशरीरी बन जाते हैं तो फिर वे ऊर्ध्वलोक में सिद्ध शिला तक कैसे पहुंचते हैं ? उत्तर-पूर्व प्रयोग, गति-परिमाण, बन्धन छेद, और असंग क्रिया से श्रीअरिहंत परमात्मा सदा शाश्वत-सुखद स्थान उर्ध्व लोक में सिद्धशिला पर जाकर एक अनुपम दिव्य ज्योति में समा जाते हैं । उदाहरणः-१ पूर्व प्रयोग :-जसे कि धनुष्य से बाण छूटते ही वह अपने आप ही बड़े वेग से आगे बढ़ने लगता है:वैसे ही मानव की विशुद्धि आत्मा भी कर्म-मल से छुटकारा पाते ही वह सिद्ध शिला की ओर प्रस्थान कर देता है । २ गति परिमाण:-आग से त्याग धुंआ उठते ही वह प्रायः आकाश की ओर चल पड़ता है, वैसे ही मानव की विशुद्धात्मा ऊर्ध्व लोक की ओर ही अपनी राह पकड लेता है । ३ बन्धन छेद:-जैसे कि एरण्ड के कन सूर्य के उग्रताप से सहज ही फट पड़ते हैं, उस समय उनके बीज आकाश मार्ग की ओर उछलते हैं। वैसे ही मानव की कर्म बंधनों से मुक्त विशुद्ध अशरीरी आत्मा का सिद्धशिला की ओर आकर्षित होना स्वाभाविक ही है । ४ असंग क्रियाः-जैसे कि कुम्हार अपने डंडे से चक्र को एक बार जोरों से हिलाता है
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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