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________________ मनुष्य के पास उतना ही धन हो सब, जितने से उसका भरण पोषण हो जाय, अधिक रखना अपराध है । हिन्दी अनुवाद सहित RASHIS HERS ३४० संघ पूजा साहमि-बनहाल, की तेह नर नाथ ! शासन जैन प्रभावतो, मेले शिवपुर साथ ॥३॥ पट-देवी परिवार अन्य, साथे अविहड राग ! आराधे सिद्धचक्र ने, पामे भवजल ताग ॥४॥ त्रिभुवन पालादिक तनय, मयणादिक संयोग । नव निरुपम गुण निधि हुआ, भोगवतां सुख भोग ॥५|| गय रह सहस ते नव हुआ, नव लख जच्च तुरंग । पत्ति हुआ नव कोड़ि तस, राज नीति नव रंग ॥६॥ राजनिकंटक पालना, नव शन वर्ष विलीन | थापी तिहुअण पाल ने, नृप हुओ नवपद लीन ||७|| वानप्रस्थ बन गए:-सम्राट् श्रीपालकुंवर अपने सुशिक्षित आज्ञाकारी त्रिभुवन आदि नव-पुत्र, सुशीला-नव महारानियाँ, नौ लाख हवा से बातें करने वाले हृष्टपुष्ट अच्छे बढ़िया घोडे, नौ हजार कलापूर्ण भांति भांति के रथ, नौ हजार मतवाले हाथी, नव क्रोड़ शूरवीर-वीर योद्धाओं का समूह और फले फूले विशाल राजपाट को देखकर वे आनंदविभोर हो गए। उनके रोम रोम में जय सिद्धचक्र ! जय सिद्धचक्र !! यही एक बात समा रही थी। उन्हें जब अपने नए-पुराने संस्मरण याद आते तो उनका हृदय गद्गद हो जाता, उनकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगती, उनके समस्त शरीर को रोमराजि विकसित हो उठती । वे अपने परिवार सगे सनेही मित्रों से कहते—बेटा! भाइयो !! बहती गंगा में हाथ धो लो, मानक चोला पाया है तो श्रीसिद्धचक व्रत की सविधि आराधना-जप-तप कर, अपना जन्म सफल कर लो। भवसागर से तिरने का, जनम जनम की अंतराय तोड़ने का यह एक अचूक रामबाण सफल उपाय है। (सिद्ध अरिहंत में मन रमाते चलें) सिद्ध अर्हन्त में मन स्माते चलें, सर्व कर्मों के बंधन हटाते चलें । इन्द्रियों के घोड़े विषय में अडें जो अड़ें भी तो संयम के कोड़े पड़ें। तन के स्थ को सु-पथ पर चलाते चलें,सिद्ध अर्हन्त में मन रमाते चलें ॥१॥
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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