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________________ नीद में सपना दिखता है, ऑरूरी कुछ भी नहीं, से ही अज्ञान है यहां संसार है. ज्ञानी के लिये कुछ भी नहीं । ३४६ - R I ITAL श्रीपाल रास महत्त्वपूर्ण शब्द निकल पड़ते थे कि उन शब्दों के गृहार्थ का मनन-चिंतन कर, अच्छे अच्छे विद्वान मानव और कई योगी आनंदविभोर हो उठते | उनके सिर हिलने लगते । (छप्पय छंद-श्रीसिद्धचक्र स्तवन) जो धुरि सिरि अरिहंत मूल दृढ पीठ पइठिठओ। सिद्ध सूरि उवज्झाय साहु चिहुं पास गरिठिओ ॥१॥ दसण नाण चरित्त तवहि पड़िसाहा सुदरु । तत्तख्खर सवग्ग लद्धि गुरु पयदल दुबरु ||२|| दिसिवाल जख्ख जक्विणि पमुह सुस्कुसुमेहि अलंकिओ। सो सिद्धचक्क गुरु कप्पतरु कम्ह मनवंछित फल दिओ ॥३॥ सम्राट् श्रीपालकुवर कहते हैं कि श्रीसिद्धचक्र-यंत्र मानों एक कल्पवृक्ष है। जैसे कि हम वृक्ष में मूल, बड़ी टहनीयां, पसे, फल और फूल देखते हैं, उसी प्रकार इस सिद्धचक्र पत्र में मूल श्री अरिहंत भगवान है तो सिद्ध भगवान, आचार्यदेव, उपाध्याय जी और सर्व साधु-साध्वी बड़ी शाखाएं है । दर्शन, ज्ञान, चरित्र और तप छोटी टहनियां हैं । ॐ ह्रीं आदि आदि बीजाक्षर और श्रीअरिहंतादि नवपदों में जो स्वर व्यंजन और अट्ठावीस लब्धियां हैं वे वृक्ष की पत्तियांएं हैं। तीर्थंकरों के भक्त अन्य यक्ष-यक्षाणियाँ, नवग्रह, दस, दिग्पाल वृक्ष के फूल हैं । सिद्धचक्र यंत्र की सुंदर आराधना का अंतिम फल है परम पद-मोक्ष । यह कल्पवृक्ष इमारी मनोकामनाओं को सफल करे । दोहा नमस्कार कहीं उच्चरी शकस्तव श्रीपाल | नवपद स्तवन कहे मुदा, स्वर पद वर्ण विशाल ||१|| मंगल तूर बजावते, नाचते वर पात्र । गायते बहु विधि धवल, विरुद्ध पढ़ते छात्र ।।२।।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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