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________________ दुर्भन मीठा बोले फिर भी उस पर विश्वास न करो, क्यों कि उसकी जबान पर शहद रहता है, दिल में जहर । ३४४ * * * ** भोपाल रास संघ तिवारे रे तिलक माला तणुं मंगल नृप ने करेई । श्री जिन माने रे संघे जे कर्य, मंगल ते शिव देई । तप. इ.॥१३॥ तप उजमणे रे वीर्य उल्लास जे, तेहज मुक्ति निदान । सर्व अभव्ये रे तप पूरा कयों पण नाव्यँ प्रणिधान ।। तप. इ. ॥१४॥ लघु कर्माने रे किरिया फल दिये, सफल सु-गुरु उवएस | सर होये तिहां कूप खनन न घटे, नहीं तो होय किलेश ।तप. इ. ॥१५॥ सफल हुवो सवि नृप श्रीपाल ने, द्रव्य भाव जस शुद्ध । मत कोई राची रे काचो मत लेई साचो बिहुं नय बद्ध । तप. इ. ॥१६॥ चोथे खंडे रे देशभी ढाल ए, पूरण हुई सु प्रमाण । श्रीजिन विनय सुजस भगति करो पग पग होई कल्याण ॥ तप. इ. ॥१७॥ __ मंगल वधाई :-सम्राट् श्रीपालकुंवर ने बड़े हर्ष और श्रद्धा-भक्ति से महोत्सव के अंत में श्री जिनेन्द्रदेव का सविधि अभिषेक और अष्ट-प्रकारी पूजन कर भगवान से हाथ जोर कर अपने अविनय, अपराध आशातना आदि की हृदय से धमा-प्रार्थना की। उस समय दूर दूर के कई प्रतिष्ठित नागरिकों के वधाई-पत्रों का ढेर लग गया | चंपानगर के समस्त जैन श्रीसंघ ने उनके भाल पर संघ-पति पद का केशरिया तिलक कर उन्हें इन्द्रमाला पहनाई । तालियाँ और धन्यवाद की ध्वनि से आकाश गुंज उठा । भाद-चारण लोग श्रीपालकुवर के व्रताराधन की अनुमोदना करते हुए सुरीले गीत आलाप रहे थे। सच है, संघ में संघपति पद का एक बड़ा ही महत्त्वपूर्ण आदरणीय स्थान है। व्रताराधन और उसके अंत के उजमणे के उत्सव-महोत्सव की धामधूम के साथ ही अपने मानसिक विचारों की पवित्रता, दृढ़ श्रद्धा, भक्ति और आध्यात्मिक विकास का होना भी बहुत आवश्यक । है अपने हृदय के बुरे विचारों को बदल देना हो वास्तविक व्रताराधना है। अभव्य मानव भी तप करते हैं किन्तु उनकी दृष्टि अपने आत्म-स्वभाव की ओर न होने से वे मान-बढ़ाई के मोह में अपना तन सूखा कर राह भटक जाते हैं। जो स्त्री-पुरुष सरल स्वभावी मंद-कषाय विनम्र श्रद्धालु हैं वे अपने सतत मनन-चिंतन से या किसी सद्गुरु के उपदेश से आत्म-स्वभाव और उसकी अनंत शक्ति को समझ इस संसार सागर से ऊपर उठ कर मोक्ष-सुख प्राप्त करते हैं। अभव्य को सिवाय भव-भ्रमण के
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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