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अपने को गधा बना दोगे तो हर एक अपना बोझा तुम पर लादता चला जायगा । हिन्दी अनुवार सहित
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तू अतिशीघ्र श्रीसिद्धचक्र की आराधना और उजमणा कर अपना मानव-भाव सफल चना ले अन्यथा यह दुनिया हमारे समान रंग बदलते देर न करेगी। फिर तु "घर का न घाट का " कहीं का न रहेगा। प्रतिभाशाली बन । कुंवर ने एक रत्नजड़ित स्वर्ण के कलापूर्ण सिंहासन - समवसरण पर श्री जिनेन्द्रदेव की अनुपम दिव्य प्रतिमाजी और श्री सिद्धचक्रजी का यंत्र विराजमान कर उसके पास एक बड़े पाद पर गेहूँ, चावल, चने, मूंग, उड़द आदि धान्य से सविधि नवपद मंडल की रचना की ।
फिर अरिहंत पद के बाहर गुण हैं अतः मंडल के पहले अरिहंत - पद की धूप-दीप केशर से पूजन कर उन्होंने श्रीफल के बारह * गोलों को घी-शकर से भर उसके साथ ३४ बहुमूल्य हीरे श्रीसिद्धचक्र-यंत्र के सामने पाट पर चढ़ाये । दूसरे सिद्ध-पद की पूजन कर उस पर गोले और बहुमूल्य ३१ कर्केतन रत्न और लाल प्रवाल चढ़ाये। तीसरे आचार्य पद की पूजन कर उस पर गोले और ३६ पीले रंग के गोमेदक रत्न चढ़ाए | चौथे उपाध्याय - पद की पूजन कर उस पर गोले और पच्चीस बढ़िया पन्ने चढ़ाए | पांचवें साधु-पद की पूजन कर उस पर गोले और अरिष्ट रत्न ( शनि के ) २७ नग चढ़ाए। छठे दर्शन-पद को पूजन कर उस पर गोले और ६७ बहुमूल्य मोती चढ़ाए | सातवें ज्ञान -पद की पूजन कर उस पर गोले और ५१ मोती चढ़ाए । आठवें चारित्र - पद की पूजन कर उस पर गोले और ७० मोती चढ़ाए। नवमें तपपद की पूजन कर उस पर गोले और ५० मोती चढ़ाए ।
साद श्रीपालकुंवर ने नवपद मंडल, नवग्रह और दश दिग्पालों की नैवेद्य वस्त्र, फल, फूलादि से ऐसे उदार भाव, श्रद्धा और विधिविधान से पूजन-अर्चन की उसे देख राजधानी चंपानगर और उसके आस-पास की जनता आश्चर्य चकित हो गई। "वन्य है सम्राट श्रीपाल को ! विधि-विधान - उजमणा इसे कहते है । "
गुरु विस्तारे उजम करी, न्हवण उत्सव करे राय । आठ प्रकारी रे जिन-पूजन करे, मंगल अवसर थाय ॥ तप इ. ॥१२॥
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* नवपद मंडल में जिस पद का जैसा रंग से गोले रंग है उसी रंग कर चढ़ाये जाते हैं । साथ ही प्रत्येक पद के जितने गुण हैं, प्रायः उतने हो रहन-मोती गोले आदि चढ़ाते हैं । सिद्धपद आचायपंद और साधुपद में कहीं कहीं अंतर है, जैसे कि सिद्ध भगवान के आठ जोर अपेक्षाकृत ३१ गुण हैं। आचार्य भगवान पंचाचार पालक है व अन्य को पंचाचार पालने की प्रेरणा देते हैं अतः तोसरे पद की पूजन ३६ रत्न के साथ पांच पीले पुखराज भी चढ़ाते हैं । साधुपद के ऐसे तो २५ गुण हैं किन्तु वे पंच महाव्रतधारी हैं अतः उस पद में पांच हीरे आदि रत्न रखते हैं ।