SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 354
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हीरा परा बाजार में रहा छार लपटाय । बहु तक मूरख पचि मुए, कोई परवी लिया उठाय ।। ३५. SHASHANKARRRRRRRIT श्रीपाल राम साहित्य-शास्त्र में गृहस्थाश्रम को अपेक्षाकृत स्वर्गीय संसार को उपमा दी गई है। आज आप अपने हृदय से तो पूछियेगा कि आपका संसार कैसा है ? मन जानता है। अरे! इतने दबे स्वर में क्यों बोल रहे हो ? क्या शास्त्रकार भूल गए ? जी नहीं, हमारी भूल ही हमें खा रही है। हमने श्रावक के इक्कीस गुणों का पालन नहीं किया। न हमारे परिवार में इन उत्तम गुणों की चर्चा ही कभी होती है। सच है आज समाज और परिवार में जो अशांति और धुराईयाँ बड़े वेग से फैल रही हैं, इस का यही एक कारण है कि मानब बातें और व्रत-नियमादि तो बहुत ही करते हैं किन्तु महापुरुषों के अनुभूत सन्मार्ग दर्शक श्रावक के इक्कीस गुणों की ओर जरा भी आंख उठा कर नहीं देखते। आज हजार श्रावक-श्राविकाओं में से शायद ही दो चार स्त्री-पुरुषों को इक्कीस गुणों के नाम याद होंगे। भला फिर आप के परिवार और समाज में प्रगति कैसे हो ? संभव है, कोई यह कहे कि अरे, इस साधारण छोटी सी बात में क्या धरा है ? क्या आप इसे एक छोटी सी बात मानते हैं ? बस, यहीं आय राह भटक गये हैं। एक भारी मूल्य की सोने की सुन्दर घड़ी है, उसके एक छोटे से लीवरके एक ही दांते की उसमें यदि कमी है तो संसार उसे क्या घड़ी कहेगा ? नहीं, चूनेदानी | उसका कोई मूल्य नहीं। इसी प्रकार जो व्यक्ति श्रावक के इक्कीस गुणों की उपेक्षा कर बैठता है वह मानव प्रत्यक्ष इस संसार में भारभूत है, उसके जीवन का कोई अर्थ नहीं । महापुरुषों के अनुभूत पवित्र शब्दों की एक ही चिनगारी मानव के जनम-जनम के पापों को क्षण भर में स्वाहा कर उसे "नर से नारायण " भगवान बना देती है प्रिय पाठक और श्रोतागण ! आगे बढ़ो ! आगे बढ़ो !! आज ही दृढ़ संकल्प के साथ सर्व प्रथम श्रावक के इन इक्कीस गुणों का अपने जीवन में आचरण करना आरंभ कर दें। अपने परिवार को भी सप्रेम इस सन्मार्ग की ओर आकर्षित कर अपना जीवन सफल बनाओ। सचमुच आपका स्वर्गीय संसार चमक उठेगा । श्रीसिद्धचक्र के आठवें चारित्र पद की आराधना का वास्तविक फल यही है कि आप केवल नाम के श्रावक ही न रह कर इन इक्कीस गुणयुक्त सच्चे श्रावक बने, श्रीपालकुंवर के समान श्रीजिन-शासन की शोभा बढ़ाएं । इम सिद्धचक्रनी सेवना, करे सदा सादा चार ते वर्ष । मे. । हवे उजमणा विधि तणो, पूरे तप उपनो हर्ष ॥ मे. म. ॥१६॥ चोथे खंड़े पूरी थई ढाल नवमीं चढ़ते रंग । मे. । विनय सुजस सुख ते लहे, सिद्धचक्र थुणे जे चंग॥म. म. ॥१७॥
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy