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मानव तेरा गुण बड़ा, मांस न आवे काज । हाड़ न होते आभरण, त्वचा न बाजन बाज || हिन्दी अनुनाव सहित
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54 5२३३९ एक अचम्भा ऐसा हुआ, जलमें लागी लाय ।
जैन धर्म को पाय के, छोड़े नहीं कषाय ।। प्रश्न - क्रोध किसे नहीं आता ? दुर्गुण किसमें नहीं है ? उत्तर-महानुभाव ! हमारा यह अभिप्राय नहीं कि मानव को यदि क्रोध आता है, उसमें दुर्गुण है तो वह व्रताराधन जप-तप का ही त्याग कर दे या करनेवाले को अपने पास ही न फटकने दे। उनसे घृणा करे । मानव में जन्म-जन्मांतरों के संस्कारवश, कम-अधिक मात्रा में कषाय और दुर्गुणों का होना स्वाभाविक है। तभी तो मानव को छयस्थ-अपूर्ण कहा है। भगवान का सिद्धान्त है कि " बढ़े चलो हिम्मत मत हरो" | अपनी अनादि काल की जो भूल है, उसे सुघाटो। भाराधक बन भागे बदने का Try Try again, बार बार प्रयत्न करो।
प्रश्न-आगेबढ़ने और बुराइयों से बचने का उपाय क्या है ? उत्तर-इसका यही एक सर्वश्रेष्ठ उपाय है कि आप श्रावक के इक्कीस गुणों को याद कर उसका ठीक उसी प्रकार पालन करें। सच्चे श्रावक बनें ।
श्रावक के गुणः- (१) श्रावक का किसी को कष्ट देने का स्वभाव न होना चाहिए । (२) वह प्रतिभाशाली, बलवान हो, उसके मुंह पर सदा सरलता, प्रसन्नता झलकती रहे । (३) वह शांत, दान्त, क्षमाशील, मिलनसार, विश्वासपात्र और धर्यवान हो । (४) समयज्ञ और लोकप्रिय हो । (५) क्रूरतारहित हो । (६) लोकापवाद से डरे, इहलोक और परलोक के विरुद्ध आचरण न करे। (७) मूर्ख, धूर्त और विवेकहीन न हो। (८) व्यवहारकुशल और भले-बुरे का पारखी हो । (९) लज्जाशील हो । (१०) दयालु हो। (११) सम-भावी हो अर्थात् भली-बुरी बाते देख या सुन कर एक दम से आवेश में न आवे। राग-द्वेष से दूर रहे । लंपट न हो (१२) बाहर-भीतर से सरल समान सम्यग्दृष्टि हो (१३) गुणानुरागी हो । (१४) न्यायपक्ष का साथ दे, अन्याय से सदा दूर रहे। (१५) भविष्य का विचार कर सोच समझ कर ही आगे बढ़े। (१६) विशेषज्ञ-सन-असत, हितअहित, गुण-दोष को जानने में चतुर हो । (१७) अपने आदर्श पूर्वजों के सन्मार्ग पर ही चले। (१८) विनयवान् हो । (१९) पराये उपकार को माने-गुणचोर न हो। (२०) " परोपकाराय सतां विभूतयः"- अर्थात् सत्पुरुषों की संपत्ति परहित और परमार्थ के लिये ही होती है । ऐसी श्रावक की रीति-नीति हो । (२१) अपने जीवन की अंतिम सांस तक धर्मध्यान, प्रभु-भजन, दान पुण्यादि के सुअवसर को वह हाथ से न जाने दे।