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चंचल मन है भेन दिखाता, भेद दिचाना मय है । निश्चल मन अभेद दिग्बाता, फरत अभेद अभय है ।। ३३२ HARRRRRRR-SA
श्रीपाल रास भव-भ्रमण का नाटक भी एक भारी समस्या है। वे मानव धन्य हैं, कृत पुण्य हैं जो कि इस विकट समस्या से मुक्त हो परमपद पाने को उत्सुक हैं। गुरुदेव ! मेरी भी यही शुभ कामना है कि एक दिन मुझे भी चारित्ररत्न की प्राप्ति हो । किन्तु इच्छा होते हुए भी मैं आगे नहीं बढ़ पाता हूँ। कि एक दिन मुझे अन्य कोई आत्मश्रेय का मार्ग दशेन देकर अनुगृहीत करें | राजर्षि अजितसेन ने मुस्कराकर कहा श्रीपाल ! सच है-इस समय आपको भोगावली कर्मों का उदय है, अतः इस भव में तो आपको चारित्र उदय आना असंभव है किन्तु आप मनुष्य भव, देव-भवादि का सुख भोग करते हुए क्रमशः नबमें भव में आप निश्चित ही परम पद-मोक्ष को पाएंगे। सम्राट श्रीपालकुंवर अपने जनम-मरण के फेरों का एक दिन अन्त होने की सुन आनंद विभोर हो फलेन समाए । उन्होंने कहा-धन्य है! धन्य है !! गुरुदेव आपकी इस महान कृपा के लिए हम लोग हृदत से आभारी हैं। पश्चान् राजर्षि अजितसेन जनता को धर्मलाभ दे, हिरण्यपुर से आगे पधार गए और श्रीपालकुवर अपने राजमहल की ओर चल दिये ।
चौथा खण्ड - नवमीं ढाल
(राग-कंत तमाक् परिहरो) हवे नरपति श्रीपाल ते निज परिवार मंयुत्त मेरे लाल । आराधे सिद्धचक्र ने विधि सहित गृहीत सुमुहुत्त मेरे लाल, मननो महोटो मोजमा मयणासुंदरी त्यारे भणे, पूर्व पूज्यु सिद्धचक्र मेरे लाल | धन त्यारे थोडं हाँ, हवणां तू ऋद्धे शक मेरे लाल, मनमो महोटो मोजमां २ धन महोटे छोटुं करे, *धर्म उजमणु तेह मेरे लाल | फल पुरुं पामे नहीं, मत करजो तिहां मंदेह मेरे लाल, मननो महोटो मो. विस्तारे नवपद तणी तिणे पूजा करी सु विवेक मेरे लाल। धननोलाहो लीजिये राखो महोटी टेक मेरे लाल, मननो महोटो मोजमां ।४। मयणां वयणां मन धरी, गुरु भक्ति शक्ति अनुसार मेरे लाल । अरिहंतादिक पद भलांआराधे ते सार मेरे लाल, मननो महोटो मोजमां ॥५॥
* (पाठांतर ) जे करणी धर्मनु तेह ।