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________________ भोग वासना बढाने से ही मन ! मंसार बढ़ता है। भगवान घटाने से हो, मन! संसार घटता है । ३२८६ 1969 धोपाल स चोथे खंडे ढाल हुई ए आदमी रे, एहमां गायो नवपद महिमा सार रे । श्रीजिन विनय सुजस लहींजे एहथी रे, जगमां होवे निश्चे जयजय कार रेसां. क्यों भूल रहे हो ? :- एक बार राजा – श्रीकान्तने अपने सात सौ साथियों के साथ एक सिंह जागीरदार के गांव पर चडाई कर दी, उसके गांव को लूटा और वहाँ से वह नौ-दो ग्यारह हो गया । पश्चात् जागीरदार को जब मालूम हुआ कि श्रीकान्त उसके गांव का धन-माल और पशु ले भागा है तो उसने अपने वीर 'सैनिकों के साथ उसका पीछा किया मांगे में ही उसके सात सौ साथियों को यमपुर पहुंचा कर श्रीकान्त के छक्के छुड़ा दिये । उसे अपने मुंहकी खाकर ग्राण ले भागना पड़ा | पश्चात् सिंह जागीरदार अपना धन-माल और पशुओं को ले वापस लौट गया । राजर्षि अजित सेन - श्रीपाल कुंवर ! आपको पता है कि उस श्रीकान्त और उसके साथियों का आगे क्या हुआ ? नहीं | क्यों भूल रहे हो ? आप स्वयं ही तो गत जन्म में श्रीकान्त राजा थे, और मयणासुन्दरी आपकी रानी श्रीमती थीं । आपके पास जो सात सौ राणा बैठे हैं, ये वही साथी हैं जिन्होंने आपके सिद्धचक्र व्रत की सराहना की थी। इनको मैंने गत भव में अपनी तलवार से यमपुर पहुंचा दिया था । अतः मुझसे इस भव में इन्होंने बंदी बनाकर आपके सामने उपस्थित किया | मेरे हृदय में विश्वासघात - आपका राज हड़प ने की जो दुर्मति उत्पन्न हुई उसका एक ही प्रमुख कारण हैं, अपने अगले जन्म की लेनदेन का निपटारा | अर्थात् मैं ही सिंह जागीरदार हूँ जिसका कि आपने गांव और पशुलूटा था । लेन-देन का नाम सुन श्रीपाल - मयणासुंदरीके रोमांच खडे हो गए | सच है, ऋण और वैर सदा साथ चलता है, अतः इस से सदा दूर रहना चाहिए । राजर्षि अजितसेन - श्रीपालकुंवर ! शुभाशुभ कर्म क्या नहीं करते ? आपको जो प्राणांत जल - घात, असाध्य कुष्टरोग और डूब जाति के कलंक का सामना करना पड़ा यह सब पूज्य मुनिराज को सताने का ही कटु फल था। इन संकटों के सामने यदि कोई साधारण मानव आप प्रत्येक होता तो वह कभी से यमलोक पहुंच जाता किन्तु आपने गत जन्म में रानी श्रीमती की शुभ प्रेरणा से श्रीसिद्धचक्र व्रत की आराधना की थी अतः उसी के प्रभाव से स्थान पर घोर संकट से बचे बाल-बाल बचे गए। जगह-जगह आपको सुयश जय-विजय ऋद्धि सिद्ध मान-सम्मान की प्राप्ति हुई। आपकी जो छोटी आठ रानियां हैं, वे गत भव में रानी श्रीमती की सखियाँ थीं
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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