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________________ मृग तृष्णा जलपीने जावे, प्रागन हरिण गंवावे । भोगेच्छा कर त्योंही विषयी, फिर फिर मृत्यु बुलावे ॥ हिन्दी अनुवाद सहित KARACTERWAREEKATIHAR ३२९ उन्होंने आपके व्रताराधन की हृदय से सराहना की थी, अतः वे फिर यहाँ आप लोगों से आ मिलीं । इन में जो रानी तिलकमंजरी है, इसने गत भव में एक भारी भूल की, इसने क्रोधावेश में अपनी एक सोत से केवल इतना ही कहा था कि "तुझे सौप खाए ।" देखो कहना सहज है किन्तु कटु वचन के फल को भोगना बड़ी टेढ़ी खीर है। सचमुच इसे एक काले साँप ने ऐसा डसा कि यह पानी तक न मांग सकी । इसे अपनी भूल का कटु फल भोगना ही पड़ा । इस के माता पिता ने इसे मरघट में चिता पर लेटा दी थी । यदि उस दिन एक पांच मिनट आप वहां नहीं पहुंचे होते फिर तो क्या शेष था ? इस का कहीं पता तक नहीं लगता। श्रीपालकुवर-गुरुदेव ! मैं ने आपसे चपानगर का राज-पाट स्वीकार करने का सादर अनुरोध किया था ? फिर भी आपने उसे अस्वीकृत कर वन की राह क्यों ली ? राजर्षि अजितसेन--श्रीपालकुंबर ! मानव लाच अनुरोध हजारों उपाय करे किन्तु भवान्तर के शुभाशुभ संस्कार उसे लोह-चुम्बक के समान अपनी ओर आकर्षित कर ही लेते हैं | मैं पूर्व भव में आप पर विजय प्राप्त कर जब वापस अपने गांव को लौटा तो विजय के उपलक्ष्य में मेरे सामने जनता की ओर से बधाई पत्रों और धन्यवाद की झड़ी, उपहारों का ढेर लग गया किन्तु सामने दीवार पर एक मकड़ी को देख मैं चौंक पड़ा । उसी समय भेदी अंतरात्मा ने कहा कि रे सिंह ! तू जनता की मिथ्या मान-बढ़ाई की चकाचौंध में भान न भूल । एक अन्न के कीट मूर्ख मानव पर विजय नहीं, विजयी तो वह महापुरुष है जिसने काल को जीत कर अजरामर जीवन की विजय-पताका लहराई । एक कवि ने इस का बड़ा सुंदर शब्दचित्र प्रस्तुत किया है... करत-करत धन्ध कछु न जाने अंध आवत निकट दिन आगले चपाक दे । जैसे बाज तीतर को दावत है अचानक, जैसे उक मछली को लीलत लपाक दे। जैसे मक्षिका की घात मकरी करत आय, जैसे सांप मूसक प्रसत गपाक दे। चेतरे अचेत नर सुन्दर संभार राम, ऐसी तोहि काल आय लेइगो टपाक दे। रे मानव ! क्यों तू मोह में भान भूला है, तुझे पता नहीं कि तेरी मृत्यु के दिन अति शीघ्र तेरे निकट आ रहे हैं। जैसे कि बाज तीतर पर झपट पड़ता है, बगुला चट से मच्छी को निगल जाता है, साप चूहे को गप से गले के नीचे उतारते देर नहीं करता वैसे ही मृत्यु अपना मुंह फाड़ तेरे सिर पर खड़ी है-न मालूम किस समय तेरे पर टूट पड़े । तू " शतं विहाय " बड़ी सावधानी के
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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