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श्रीपाल - मयणा का पूर्व भव:
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श्रीपाल रास ५३-२२५
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(१) श्रीमती --- प्राणनाथ ! निरपराध जीवों को सताना और उन का वध करना क्षत्रियोंके लिए एक महान कलंक है । (२) श्रीकान्त राजाने एक मुनि की पानी में डूबाना चाहा किन्तु फिर कुछ दया आने से उन को वह वापस निकाल रहा है । ( ३ ) श्रीमती - गुरुदेव ! आप पतिदेव को मुनिवाताना की क्षमा प्रदान कर इन्हें सम्मार्गदर्शन दें । ( ४ ) सिंह जागीरदार श्रीकान्त राजा के छक्के छुड़ा, अपना धनमाल और पशु ले वापस जा रहा है । (५) श्रीकान्त राजा और रानी श्रीमती ने पूर्व भव में नवपद आराधना की थी वे ही अब ये दोनों श्रीपाल - मयणा है ।