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सगा परखिये समय पर, विपत्ति पड़े पर नार। सुग जब ही परिस्खये, रण जे तलवार ।। ३२२R AHARASHTRA श्रीपाल रास
राजर्षि अजितसेन---राजन् ! इस जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में हिरण्यपुर नामक एक नगर था । वहाँ एक श्रीकान्त नाम का राजा राज्य करता था । उसकी रानी का नाम था श्रीमती । श्रीमती बड़ी सहृदया, धर्मात्मा, सद्गुणानुरागी जैन धर्मोपासिका थीं । उसे राजा का शिकारी स्वभाव बड़ा खटकता था । एक दिन उसने राजा से कहाप्राणनाथ ! किसी निरपराध मूक पशु की हिंसा करना मानवता का अभिशाप है । तृण-भक्षक, पीठ बता अपने प्राणों को ले भागते हुए प्राणी पर पीछे से शस्त्र-अस्त्र ले टूट पड़ना क्षत्रिय कुल के लिये एक भारी कलंक है । क्षत्रियों का प्रमुख कर्तव्य है कि वे प्राणियों के मुंह में तृण देख उसे अवश्य ही अभय कर दे। महापुरुषों ने स्पष्ट ही कहा है कि "क्षतात् त्रायते सः क्षत्रिः" । अनेक संकटों से मुक्त करने को अपने प्राणों की बाजी लगा कर जनता-जनार्दन प्राणी-मात्र की रक्षा करे वही वास्तविक क्षत्रिय राजपूत है । इतिहास इस बात का साक्षी है । आपकी छत्रछाया में रहने वाले बेचारे मूक प्राणी हिरन, खरगोश, सुअर, बारहसिंगे, सिंह, चीते आदि का वध करना उचित नहीं । क्यों कि ऋण और पैर तो सदा इस जीव के साथ चलते हैं। अकारण किसी से वैर बसाना सोया सॉप जगाना है । आज अपकी सत्ता और बल के सामने बेचारे निर्बल मानब और मुक पशु-पंखी अपना सिर नहीं उठा पाते हैं। ये विवश हो आपके अन्याय, हठधर्मी, अत्याचारों को चुपचाप सह लेते हैं। इसका यह अर्थ नहीं कि वे कोरे मिट्टी के पुतले या मरे मुरदे ही हैं ।
याद रक्खो ! उनकी अंतर-आत्मा तो अजर अमर ज्ञानवान है, वह अपसे आज नहीं तो कल, भवांतर में किसी भी पर्याय-रूप में किसी भी अवस्था में अपने वैर का बदला लिये बिना न रहेगी । एक द्वारपाल ने ग्वाले के भव में तीर्थंकर अमण भगवान महावीर के कानों में खोले ठोके, एक काचरी के जीव ने राजा बन कर खंधक महामुनि की खाल खींची और अपने पूर्व-भव का प्रत्यक्ष बदला लिया । आपको आपना जीवन भला और दुःख एक बला मालूम होता है इसी प्रकार अन्य जीवों को भी अपना जीवन अति प्रिय और मरण अप्रिय है । अतः Live and let live जीओ और जीने दो । * सभी जीवों को अपने समान समझ कर किसी भी प्राणी भूत-जीव तथा सत्त्व को मत मारो, दास मत बनाओ, पीड़ा मत पहुंचाओ-और किसी को भी संताप मत दो और न किसी को उद्विग्न करो। यही धर्म ध्रुव है, शाश्वत है और नित्य है।
*-सव्वे पाणा, सम्वे भूया, सब्वे जीवा, सम्वे सत्ता ण हतब्धा, ण मज्जावे, ण परि घितब्वा, ण परितावेयव्वा ण किलामेयव्या ण उद्दयध्वा एस धम्मे सुद्धे णिय ए-सासए, समिच्च लोयं खेयन्ने हिं पवेइ ए।
याचारांग सूत्र १-३० १