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________________ प्रिय भाषण अरू नम्रता, आदर प्रीन विचार । लज्जा क्षमा अयाचना, यह गुण र धार ॥ हिन्दी अनुवाद सहित ******SHARMACARR OR२ ३२१ भरत क्षेत्र माँ नयर हिरण्यपुरे हुओ रे, महीपति महोटो श्रीकांत रे | व्यसन तेहने लाग्य आहेड़ा तणुं २, कोई वार राणी एकांत रस.२॥ राणो तेहनी जाणो सुगुणा श्रीमती रे, समकित शीलनी रेख रे।। जिन धर्मे मति रूड़ी कूड़ी नहीं मने रे. दाखे शील विशेष रे । सां.॥३॥ पियु तुझने आहेड़े जावू नवि घटे रे जेहने केड़े छे नरकनी भौति रे। धरणी ने परणी बेलाजे तुज थकी रे,मांडीजेणे जिव हिंसानी अनीति रे।।सां४॥ मुख तृण दीधे अरिपण मुके जीवतो रे, एहको छ रूढो क्षत्रीनो आचार रे। तृणआहार सदाजे मृग पशु आचरे रे, तेहने मारे जे आहेड़े ते गमार रेसि ।। ससलां नासे पासे नहीं आयुध धरे रे, राणी जाया वाणी तेहने केड़ रे। जे लागे ते आगे दुःख लहेशे घणां रे, नागसुंबल न को क्षत्रा वेढरे।सां।।६।। अवल कुलाशी झखने निज द्रुप्प पीडतां रे, खगने मृगने तृणभक्षी ने दोष रे। हणतांनपने न होय इमजे उपदिशे रे, तेणे कीधो तस हिंसक कुल पोष रेस ७४ हिंसानी ते खोसा सघले सांभली रे, हिंसा नवि रूढी किण ही हेत रे।। आप संतापे पर संतापे पामियो रे, आहेड़ी ते जाणो कुलमां केत रे ||सांचा जाओ रसातलविक्रम जे दुर्बल हणे रे, एतोलेश्या-कृष्णनोधन परिणाम रे। भूडी करणी थी जग अपजस पामीये रे, लीहालो खातां मुख होवे श्यामरे सां९ एहवां राणीए वयण कह्यापण गयने रे, वित्त माहे नवि जाग्यो कोई प्रतिबोध रे। घन वरसे पण नविभीन मगसेलियो रे, मूरख ने हित उपदेश होय क्रोधरेम।१०) भूतपूर्व घटनाएं :-श्रवधि-ज्ञानी राजाषि अजितनसे ने कहा-श्रीपाल ! तीर्थंकर, गणधर बलदेव, वासुदेव, राजा महाराजा आदि समर्थ शक्तिशाली मानवों के यदि कहीं हाथ टिके हैं तो सिर्फ कर्म-राज के आगे । कर्म की गति बड़ी विचित्र है। यदि आप अपने भूतपूर्व संस्मरणों का मनन करेंगे तो आफ्फो ज्ञात होगा कि मानव की एक साधारण सी भूल का परिणाम कितना भयंकर एवं दुःख-द होता है। सम्राट श्रीपालगुरूदेव ! कृपया मेरी गत जन्म की घटनाओं का कुछ परिचय देगे?
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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