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________________ इच्छा ही नरक है, सारे दुःचो का आगार ! छाओं को छोड़ना स्वर्ग प्राप्त करना है। ३१८ -HARASHARA श्रीपास रात ए नवपद ध्यातां थकां, प्रगटे निज आतम रूप रे । आतम दरिसण जेणे कयु, तेणे मूंद्यो भव कूप रे ।। सं. | ३८ ॥ क्षण अर्धे जे अघटले, ते न टले भवनी कोड़ी रे । तपस्या करतां अति घणी, नहीं ज्ञान तणी जोड़ी रे ॥ सं. ॥ ३९ ॥ आतम ज्ञाने मगन जे, ते सवि पुद्गलनो खेल रे । इन्द्रजाल करी लेखवे, न मिले तिहाँ देइ मनमेल रे ।। सं ॥४०|| जाण्युं ध्यायो आत्मा, आवरण रहित होय सिद्ध रे । आतम ज्ञान ते दुःख हरे, एहिज शिव हेतु प्रसिद्ध रे ।। सं. ॥४१॥ चौथे खंडे सातमी, दाल पूरण थई ते खास रे । नवपद महिमा जे सुणे, ते पामे सुजस विलास रे ।। सं. ॥४२॥ वही मानव मुक्त होगा:-श्रीअरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, सर्व-साधु, दर्शन ज्ञान, चरित्र और तप इन का साकतिक नाम है- श्रीसिद्धचक्र । कर्मबंधनों से मुक्त होने का अचूक एक ही रामबाण उपाय है श्रीसिद्धचक्र की आराधना। हाँ! कर्म बंधनों से वही मानव मुक्त होगा जिस की आत्म-दर्शन की ओर सतत अभिरुचि हो, अर्थात् उसका यह दृढ़ निश्चय हो कि " आत्मा का एक स्वतंत्र अस्तित्व है" मेरी आत्मा जड़ से अलग है । मैं शुद्ध हूँ, बुद्ध हूँ। ऐसा मानने वाला व्यक्ति विशेष भव-भ्रमण नहीं करता। सच है, आत्मदृष्टा विवेकी मानव अर्ध क्षण में जितने कर्मों का क्षय करता है. उतने अज्ञानी मानव पूर्व कोटी अर्थात सित्तर लाख छप्पन हजार मोड़ पूर्व तक महान उग्र जप तप करने पर भी अपने कर्मों का क्षय नहीं कर सकता । अतः आत्मदर्शन आत्मा के स्वतंत्र अस्तित्व का बोध उतना ही अधिक उपयोगी है जितना कि रात्रि के बाद सूर्योदय का होना । सूर्य मानव को नवजीवन, नवचेतना नवस्फूर्ति, स्वास्थ्य-बल, साहस प्रदान कर उसकी कायापलट कर देता है, तो आत्मदर्शन, मानव के अनादि कालीन मिथ्यात्व-अज्ञान, मोह, ममत्व को दूर कर उसे एक नया प्रकाश, नई सद्विचारधारा, आत्म-जागरण के सन्मार्ग का दर्शन उपहार भेट कर उसे अजर अमर, अबल, शाश्वत सुखमोक्ष प्रदान करता है। क्या प्रकाश के आगे अंचेरा टिक सकता है ? नहीं। इसी प्रकार आत्मदर्शन के प्रकाशसे मानव के हृदय के बुरे संकल्प विकल्प आचार विचार छूमंतर हो जाते हैं। फिर वह मानव आत्म-विवेक के अनुसंधान
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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