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उच्च पुरुष अपनी आत्मा से प्रेम करता है, नीच आदमी अपनी सम्पत्ति से प्रेम करता है। हिन्दी अनुवाद सहित RRRRR
542667३१७ सच है, अपुनबंधकता अर्थात मिथ्यात्व मोहिनी कर्म की स्थिति के उत्कृष्ट बंध का निश्चित ही बंद होने से मानव को शुद्ध धर्म क्रियाएं आराधन करने का सुअसर हाथ लगता है।
फिर *अर्धपुद्गल-परावर्त काल में इस जीव को सम्यक्त्व का स्पर्श होता है । यदि सम्यक्त्व स्पर्श कर वापस न जाए तो सम्यक्त्वधारी महा भाग्यवान मानव निश्चित ही छांसठ सागरोपम से कुछ अधिक समय में अनादिकाल के भवभ्रमण से मुक्त हो परम पद प्राप्त कर लेता है ।
विशेषः-नवनव प्रकरण का अभिप्राय है कि जिन लोगों ने +अंत मुहुर्त मात्र सम्यक्त्व की स्पर्शना कर ली है, उनको निश्चित ही अर्ध पुद्गल परावर्तन काल भव भ्रमण शेष सागा है। अरिहंत सिद्ध तथा भला, आचारज ने उवज्झाय रे । साधु नाण देसण चरित, तब नव पद मुगति उपाय रे ।। सं. ॥३७॥
*पुद्गल परावतः असंख्यात वर्षों का एक पल्योपम, दस कोड़ा-कोड़ी पल्योपम का एक सागरोपम अर्थात् सागरोपम वर्ष की व्याख्या करते हुए जैन-शास्त्रों में कहा गया है कि एक योजन ( चार कोस ) लंबा चौड़ा गहरा प्याले के आकार का एक गड्ढा (पल्य) खोदा जाय जिसकी परिधि तोन योजन हो और उसे उत्तर कुरु के मनुष्य के एक दिन से सात दिनों तक के बालाप से इस प्रकार भरा जाय कि उसमें अग्नि, जल तथा वायु तक प्रवेश न कर सके। उस गड्ढे में से १००-१०० वर्षों से एक बालाग्र निकाला जाय और इस प्रकार एक-एक बाला निकालने पर जितने काल में वह पल्य खाली हो जाय उसे एक पल्योपम वर्ष कहते हैं। ऐसे दस कोदा-कोटी पल्योपम वर्ष का एक सागरोपम होता है। बीस कोटा-कोटि सागरोपम का एक कालचक्र, अनंत कालचक्र का एक पुद्गल परावर्त काल होता है ।
अपार्ध पुद्गल परावर्ग:जीव पुद्गलों को ग्रहण करके शरीर, माषा, मन और श्वासोच्छवास रूप में परिणत करता है । जब कोई एक जीव जगत में विद्यमान समप्र पुद्गल परमाणुओं को आहारक शरीर के सिवाय शेष सब शरीरों के रूप में तथा भाषा, मन और श्वासोच्छ्वास रूप में परिणत करके उन्हें छोड़ दे इसमें जितना काल लगता है, उसे पुदगल परावर्त कहते हैं। इसमें कुछ ही काल कम हो तो उसे अपार्ष पुद्गल परावर्त कहते हैं।
+ अन्तर्मुहर्त :-दो समय से लेकर दो घड़ी ४८ मिनिट में एक भी समय कम हो तो इतने काल का अंतर्मुहर्त कहते हैं। दो समय का काल जघन्य अंतमहत्तं, दो घड़ी में एक समय कम उत्कृष्ट अंतमुहूर्त और बीच का सब काल मध्यम अंतमुहूर्त समझना चाहिये ।