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जहाँ भय और संशय रहता है, वह आध्यात्मिक विकास और ऋद्धि सिद्धि नहीं पनपती |
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श्रीपाल रास
शुद्ध क्रिया के लक्षण:
[:- व्रत के महत्व और विधि के सूत्र - अर्थ को समझ उसकी प्रसन्न -मन श्रद्धा बहुमान और हृदय से आराधना करना, तथा व्रत विधि के जानकार सद्गुरु या वृद्ध श्रावक की सेवा करना चाहिए। व्रत की स- विधि शुद्ध भाव से आराधना करने से अनेक विघ्नों-कर्मों का नाश, द्रव्य-संपत्ति, धनधान्य और भाव संपत्ति-सद् ज्ञान-विज्ञान, विनय- विवेकादि की प्राप्ति होती है । वे महानुभाव साधु-साध्वी धन्य हैं जो कि सदा अमृत क्रिया करने की लगन रखते हैं ।
कई मानव ऐसे हैं जिनको गर्व है कि मैंने नवपद, बीस स्थान, वर्धमान, कर्म चूर आदि तयों की दस बीस-पचास-साठ ओलियों की हैं, मैं व्रतधारी बढ़ा तपस्वी हूँ। मैं वर्षों का दीक्षित हूँ मैनें बेले तेले अठ्ठाईयाँ, दस-बीस उपवास किये हैं, अन्य लोग तो रोटी-राम भोजनानंदी हैं, यह उनका भ्रम है। बिना उपयोग और सम्यक्त्व की स्पर्शना, कषाय की मंदता के कोटी पूर्व के तप-जप-संयम का कोई मूल्य नहीं । ऐसे तो इस जीव ने एक लाख योजन प्रमाण के मेरु पर्वत के बराबर गृहस्थ जीवन में बैठके - आसन, मुख वस्त्रिका, माला और साधु अवस्था में रजोहरण-ओगे मुहपत्ति, पात्रे तरपणी को अपने उपयोग में ले डाला फिर भी भव-भ्रमण न मिटा
४ तद्हेतु क्रियाः - अपनी आत्मा को संसार से मुक्त करने की हढ़ भावना से श्रीसद्गुरु को शरण में रहकर या उन की आज्ञा से स-विधि बड़े मनोयोग और अटल श्रद्धा से प्रति-दिन सामायिक, प्रतिक्रमण, जिन-पूजन, घारणा ध्यान आदि व्रत नियमों का परिपालन करते हुए एक दिन सद्गुरु से दीक्षा ग्रहण कर चारित्र की बड़े शुद्ध भाव से स-विधि उपयोग पूर्वक आराधना करना तहेतु क्रिया है । इस क्रिया से आध्यात्मिक विकसा की ओर सतत अभिरुच रखने वाले साधारण पढ़ेंलिखे मानव भी विशुद्ध चारित्र को आराधना का लाभ ले सकते हैं !
५ अमृत क्रिया:- चांदी, सोना, माणिक, मोती, हीरे, पन्ने आदि एक से एक बढ़कर बहू मूल्य पदार्थ हैं, इसी प्रकार मोक्ष - साधना में अमृत क्रिया का प्रधान स्थान है । अमृत क्रिया का अर्थ है आचार, विचार और उपचार की उच्चतम श्रेणी-भावोल्लास एक छोटा-सा दीपक अंधकार समूह को नष्ट कर देता है। एक अग्नि का कण घास के बड़े भारी ढेर को बात की बात में राख कर देता है । इसी प्रकार जीवन में सामायिक, प्रतिक्रमण पौषध, जिन-पूजन, दान, शील, तप आदि धार्मिक क्रियाओं में एक बार भी अपूर्व भाबोल्लास अमृत क्रिया का होना भवभ्रमण से मुक्त कर शाश्वत सुख -मोक्षप्रद है । Never look to the quantity of poor actions but pay praticular to the quality thereof- हमने कितना किया है यह देखना चाहिए, परन्तु कंसा किया यह देखने की विशेष आवश्यकता है ।