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क्या यह कम आश्चर्य की बात है कि लोगों को दुनिया से लगातार जाते देखकर भी यह मन संसारका संग नहीं छोड़ता ?
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6 श्रीपाल रास
छः कर्मग्रंथ, पंच प्रतिक्रमण मुख-पाठ हैं, वे नित्य प्रति जिन पूजन, सुबह शाम प्रति - क्रमण करने से नहीं चूकते उनसे हम पूछे कि महानुभाव ! आप कितने आगे बढ़े ? आपकी आराधना के संस्मरण क्या हैं ? आप कभी असत्य भाषण तो नहीं करते ? आपके व्यापारिक लेनदेन में तो * न्यायसंपन्न विभव का ही प्रमुख स्थान होगा ? आपको मान-समान का रोग तो लागू नहीं है ? आपको दैनिक कार्यक्रम में + अठारह पापस्थान के एक एक शब्द का सदा लक्ष्य बना रहता होगा ? आप प्रतिदिन किसी शुभ खाते में हाथ बटाने, अतिथि याचक की सेवा-लाभ की प्रतीक्षा में रहते हैं, या चंदा-टीप लिखाने वाले की सूरत देख किनारा करने की सोचते हैं ? आपने अपनी भूल को ढकने का तो कभी प्रयत्न नहीं किया न ? आपको अपनी भूल दिन-रात,
रातदिन सदा खटकती रहती हैं ? यदि कोई मनुष्य आपके दुर्गुण को प्रकाश में लाए तो आप उसके साथ कैसा बर्ताव करेंगे ? उसे कुछ पारितोषिक देंगे ? उत्तर में क्या पाएंगे ? हलकी हंसी मुस्कान वस । इसी मुस्कान से आज मानव साधना क्यों और कैसे ? की राह भटक दिन प्रतिदिन दया का पात्र बनता जा रहा है। ज्ञान और क्रिया में असमानता का व्रतनियम जप-तप के साथकों के लिये बहुत ही घातक सिद्ध हुआ है। कड़ी भूख-प्यास, शीत-ताप सहन करने पर भी आपकी वाणी व्यवहार, विचार और भौतिक पदार्थों की आसक्ति में परिवर्तन का न होना वास्तव में दुर्भाग्यअज्ञान कष्ट हैं। अतः अब आँखे खोलो और ज्ञानी सद्गुरु की शरण में साधना के मर्म को समझ अपना जन्म सफल करो ।
साधना क्यों और कैसे ? : - साधना क्यों? साधना का एक मात्र उद्देश्य है -- १ मिथ्यात्व - अंधश्रद्धा, अज्ञान कष्ट का त्याग और आध्यात्मिक विकास की सतत अभिरुचि । भव भ्रमण का अंत और कषाय की मंदता । २ कठोर व्रत - नियम जप तप, ज्ञान-ध्यान, ये सम्यग्दर्शन की विशुद्धि और कर्मक्षय के उपादान कारण हैं । साधना कैसे ? :- साधना कैसे करना यह भी एक समस्या है। इस समयका हल तो व्रत नियम आराधक स्त्री-पुरुषों की अभिरुचि स्वास्थ्य और प्रकृति पर ही निर्भर है। जैसे एक व्यक्ति निर्जल उपवास बड़े आनंद से कर सकता है किन्तु उसके लिये निरस -
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* न्याय संपन्न - विभव-नीति से कमाया हुआ धन ।
+ अठारह पाप-स्थान-१ प्रागाति पात, २ मृषावाद, ३ अदत्ता दान (चोरी) ४ मैथुन, ५ परिग्रह ६ कां मान, ८ माया ९ लोभ, १० राग, ११ द्वेष- ईर्षा, १२ कलह, १३ अभ्याख्यान - कलक, १४ पैशुन्य - चुगलखोरी, १५ रति-अरति १६ पर-परिवाद- निदा १७ माया मृषावादकपट, १८ मिध्यात्व- शल्य ।