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आशा ही दुःख की जननी है, और आशा का त्याग ही परम सुख-शांति देने वाली एक मिठी दवा है। हिन्दी अनुवाद सहित CAKACAK
C E३१३ लोक करे तिम जे करे, उठे बेसे संमूछिमि प्राय रे । विधि विवेक जाणे नहीं, ते अन्यानुष्ठान कहाय रे ।। सं. ॥३२॥ तद्हेतु ते शुद्ध राग थी, विधि शुद्ध अमृत होय रे । सकल विधान जे आचरे, ते दीसे विरला कोय रे ॥ सं. ॥३३॥ करण प्राति आदर घणो, जिज्ञासा जाणनो संग रे । शुभ आगम निर्विघ्नता, ए शुद्ध क्रियाना लिंग रे ॥ सं.॥३४॥ द्रव्यलिंग अनन्ता धर्या, करी क्रिया फल नवि लद्ध रे । शुद्ध क्रिया तो संपजे, पुद्गल आवर्तने अद्ध रे ॥ सं.॥३५॥ मारग अनुगति भाव जे, अपुनर्बधकता लद्ध रे । क्रिया नवि उपसंपजे, पुद्गल आवर्तने अद्ध रे ।। सं. ॥३६॥
अज्ञान कष्ट से दूर रहो:-जैनधर्म एक वैज्ञानिक धर्म है, इसका सिद्धान्त है कि अंधश्रद्धा और अज्ञान क्रिया विधान से सदा दूर रहो । । प्रत्येक जप-तप, क्रिया-विधान साधना को ज्ञान और विवेक की कसोटी पर कस कर ही करो, थोड़ा और अच्छा शुद्ध करो।
आज कई स्त्री-पुरुष नयपद-ओली-सिद्धचक्र आराधना, वर्षमान तय, बीस स्थानक तप, कल्याणक तप, ज्ञान पंचमी, मौन एकादशी, आदि अनेक तप करते हैं, अष्टमी चतुदर्शी उपवास में २४ व २६ घंटे निराहार रहते हैं। उन श्रावक-श्राविकाओं से यदि पूछा जाय कि महानुभावो! आज आपको तपाराधन करते वर्षों बीत गए, आपके विचार, वाणी और व्यवहार में कुछ परिवर्तन हुआ ? नहीं । कषाय (क्रोध, मान, माया लोभ) मंद हुई ? आपको किसी से ईर्षा और वैर तो नहीं है ? तो उत्तर में हम क्या पाएंगे, एक हल्की मुस्कान हंसी । इसी प्रकार पढ़े-लिखे वर्ग जिनको "चार प्रकरण, तीन भाष्य,
.१चार प्रकरण:-जीव विचार, नवतत्त्व, दंडक और संग्रहणी । २ तीन भाष्य-पैत्यवंद, गुरुवंदन और पच्चक्खाण भाष्य । ३ छः कर्मग्रंथ-१कर्मविपाक २ कर्मस्तव ३ बंध स्वामित्व ४ षट्शीति ५ शतक .६ षष्ट सप्ततिका कर्मग्रंथ । ४ पंच प्रतिक्रमणः-राई, देवासिय, पाक्षिक, चौमासी और संवत्सरी।