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________________ वे आत्मा के सिवाय कुछ नहीं जानते । हिन्दी अनुवाद सहित * *%25A 9 % 862 ३०७ दिन मेरे लिये मंगलमय हो । (३) हे प्रभो ! आप स्वयं प्रेम स्वरूप आनंदघन हैं, शांति और क्षमा आपकी दासी हैं, इसी प्रकार इस दास के रोम-रोम में शांति क्षमा और निर्विकार भावना का संचार हो, आज का दिन मेरे लिये मंगलमय हो (४) हे प्रभो ! मेरी मानसिक वृत्तियों दिन-प्रति-दिन पवित्र और शांत होती जा रही हैं। नाथ ! अब आप मुझे आरोग्य स्वास्थ्य, निर्भयता, और दिव्य तेज प्रदान करो। आज का दिन मेरे लिये मंगलमय हो । (५) हे प्रभो ! मैं अपनी पवित्र आत्मा के अनंत गुणों से परिपूर्ण हूँ, असयोगी, अविनाश और पर से भिन्न स्वतंत्र हूँ। मेरी असत् बुद्धि का अविलंब अंत हो । देव ! मुझे सन्मार्ग और भयो-भव में सम्यग्दर्शन, केवलीभापित धर्म, वीतराग-दशा, और आपकी शरण प्राप्त हो । आज का दिन मेरे लिये मंगलमय हो। अपवित्र मन को शुद्ध करने के लिये दृढ़ संकल्प और भगवत् प्रार्थना एक महत्त्वपूर्ण अचूक उपाय है। जैसे-जैसे इसकी प्रबलता बढ़ती जायेगी वैसे ही आपकी अनेक कठिनाइयाँ एक के बाद एक हल होकर आगे आपको बड़ा अद्भुत आनंद आयगा । ब्रह्मचर्य-घातक:- आज मानव धूम्रपान और गांजा, भंग, और अफीम खाने की च तम्बाकू सूंगने से अतिथि-सत्कार कर और मादक पदार्थों का सेवन करने में अपना बड़प्पन, सौभाग्य मानते हैं। किन्तु उन्हें पता नहीं कि हम स्वयं अपने हाथों से अपने और मित्रों के भाग्य और जीवन के हरेभरे उद्यान में आग लगा, यमराज को घर के खूटे से बांध रहे हैं। धूम्रपान से वीर्यनाश और आँखों की ज्योति मंद हो जाती है। हृदय और स्मरणशक्ति दुर्बल हो जाती है । कफ बढ़ता है। दम और खांसी धर दबाती है। सच है-"झगड़े की जड़ हंसी, रोग की जड़ खाँसी, तम्बाकू में निकोलन (निकोटिन) एक भयंकर विष है, वह मानव को अति शीघ्र काल के गाल में ढकेले बिना नहीं रहता । तम्बाकू की दुर्गंध से मेढ़क, पक्षी, मक्खी और मच्छर तक मर जाते हैं। नशे से सदा आलस्य छाया रहता है, जीवनशक्ति नष्ट हो जाती है, रक्तविकार हो जाता है। नशे से चिढ़चिढ़ा स्वभाव व स्वप्नदोष होने की संभावना रहती है। नशेबाज अपने धन और विश्वास से हाथ धो मुंह लपोढ़ता रह जाता है । अतः ब्रह्मचारी को सदा मादक पदाथ (नशे) तम्बाकू सूंघने, खाने और पीने (धूम्रपान से दूर रहना चाहिए । " ब्रह्मचर्य ही जीवन है और वीर्यनाश मृत्यु है। ब्रह्मचारी के लिये आवश्यकः-क्या आप अपना सोया भाग्य चमकाना चाहते
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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