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________________ सुख और दुःखों का कर्ता तथा विकर्ता स्वयं आत्मा है, आत्मा हो मित्र है, आत्मा ही शत्रु है। ३००RSS-HANSARRIER श्रीपाल रास *क्षमा धर्म:- क्षमा अहिंसा का एक विभाग है। अपराधी को क्षमा देने, और अपने अपराध के लिये क्षमा याचना करने से जीवन दिव्य बन जाता है। जैन आगम शास्त्रों में दृढ़ता पूर्वक क्षमायाचना करने का विधान है। महानुभावो! आपसे यदि किसी का अपराध हो गया हो तो सारे काम छोड़ दो और सबसे पहले क्षमा मांगो। जब तक क्षमा न मांग लो, भोजन मत करो, शौच मत करो, और स्वाध्याय-ध्यान न करो। क्षमा प्रार्थना करने से पहले मुंह का थूक गले न उतारो। तीर्थकरों के इस कठोर विधान का परिणाम यह है कि परस्पर क्षमायाचना की परम्परा अब तक अब ग्ड प ली आ रही है। श्री-पुरुष प्रतिदिन सुबह शाम, प्रति-पक्ष, प्रति चौमासी और और प्रति वर्ष (संवत्सरी) उदार हृदय से अपने अपराधों की क्षमायाचना करते हैं। अवलम्बन लेकर उस पर अपने मनको स्थिर करना रूपस्य ध्यान है। यह तीनों धर्म ध्यान को गिनती में हैं। ४ रूपातीव-ध्यान:-निरंजन, निर्विकार अमृत, अशरीर सिद्ध परमात्मा का ध्यान करना रूपातीत ध्यान है। शुक्ल ध्यानः-शुक्ल ध्यान की प्राथमिक अवस्था (१) पृथक्त्व वितर्क सदिचार अवस्या कहलातो है। यहाँ वितर्क का अर्थ है 'श्रुत' और विचार का अर्थ पदार्थ, शम और योग संक्रमण होता है। अभिप्राय यह है कि इस ध्यान के प्रयोग में ग्रेय वस्तु, उसका वाचक शब्द और मन आदि योगा का परिवर्त होता रहता है। फिर यह एकाग्रता आत्मस्य–मानसिक ही होती है । (२) इस के पश्चात् जब ध्यान में कुछ अधिक परिपक्वता आतो है, तो किसी एक ही वस्तु का ध्यान होने लगता है। पदार्थ शब्द और योग का संक्रमण रुक जाता है। उस समन का ध्यान एकत्व वितर्क अविचार शुक्ल ध्यान कहलाता है। (२) मन, वचन, काय के स्थूल योगों का निरोध कर देने पर सिर्फ स्वासोच्छवास जैसी सूक्ष्म क्रिया ही शेष रह जाती है, उस समय का ध्यान सूक्ष्म क्रिया अप्रतिपाति शुक्ल ध्यान कहलाता है। (४) इस ध्यान के पश्चात् जब सूक्ष्म क्रिया का भी सर्वथा अभाव हो जाता है, और आत्म-प्रदेश सुमेरु की तरह अचल हो जाते हैं उस समय का सर्वोत्कृष्ट ध्यान व्यपरत क्रिया निति शुक्ल ध्यान कहलाता है। इस ध्यान के प्रभाव से अत्यल्प काल में ही पूर्ण सिद्धि सिद्धपद को प्राप्ति हो जाती है। योग का सर्वांग रूपः- मित्रा, तारा, बला, दीप्ता, स्थिरा, कान्ता, प्रभा और परा इन आठ दृष्टियों के क्रमिक विकास में भी प्रतिपादित किया है। ध्यान का विशेष-वर्णन योगशास्त्र योग दीपक ' योग दृष्टि समुच्चय, योग-बिन्दु आदि ग्रंथों में बड़ा सुन्दर और माननीय है । पाठक उसे अवश्य हो पढ़कर, ध्यान का अभ्यास करें। *क्षमा की साधना के पांच उपायः-१कोई अपने पर क्रोष करे तो उसका कारण दढ़ना । यदि क्रोध का कारण आपको समझ में आ जाय और वास्तव में आपको भूल हो
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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