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________________ स्वानुभव, शास्त्र और गुरु इन तीनों की एकता जिसे हो जाती है वह सतत आत्मा को देखता है। २९८ *HIKARAKHAR श्रीपाल रास , पंचाश्रव थी विस्मीये, इन्द्रिय निग्रहीजे पंच रे । चार कषाय त्रण दंड जे, तजिये ते संयम संच रे, न. सं. ॥१९॥ बांधव धन इन्द्रिय सुख तणो. वली भय विग्रह नो त्याग रे । अहंकार ममकार नो, जे करसे ते महाभाग रे, ते. सं ॥२०॥ अविसंवादन जोगजे, वलि तन मन वचन अमाय रे । सत्य चतुर्विध जिन कह्यो, बीजे दर्शन न कह्या रे, सं। २१॥ कहना, सुनना, मनाना और सदा हृदय में उसके चितन की अभिरुचि-जागत रखना बाध्यात्मिक विकास की ओर प्रसन्न मन हो आगे बढ़ना, साझा विचय ध्यान है । २ पाय विचयः-दोषों के स्वरूप और उनसे पीछा कैसे छुड़ाना ? इसका मनोयोग से उपाय सोचना । मैं अनन्त ज्ञान-दर्शनपारित्र युक्त अनन्त शक्तिमान त्रिशुद्ध आत्मा हूँ। इस प्रकार सदा अपने मन को केन्द्रित करना स्व-स्वभाव में रमण करना अपाय विचय ध्यान है। ३ विपाक विचयः-प्रत्येक जीव को अपने शुभाशुभ संचित कर्मों को भोगना तो निश्चित हो है अत: सुख-दुःख के समय फलने और रोने पोटने के संकल्प-विकल्पों का हृदय से स्पाम कर, प्रकृति, स्थित, रस प्रदेश बन्ध, उदय उदीरणा और सत्ता के फल का बड़े मनोयोग से चितन-मनन करमा विपाक विचय ध्यान है। ४ संस्थान विचयः-इस में जीवों के भ्रमण स्यानों का और वहां की पीड़ा का चितन कर उससे मुक्त होने का उपाय सोचना संस्थान विचय ध्यान है । धर्मध्यान के अन्य चार प्रकार:-(१) पदस्थ ध्यान महामन्त्र नवकार के पांच पदों के गुणों का चिंतन कर मन को एकाग्र करना (२) पिंडस्थ ध्यान अपनी देह में स्थित आत्मा का ध्यान करना । पिडस्य ध्यान का अभ्यास करते समय पांच प्रकार की धारणाओं का प्रयोग करने से अति शीघ्र विशेष कर्मक्षय होते हैं। पार्थिवी धारणा:-मध्य लोक को क्षीर सागर, उसके बीचो-बीच स्थित जंबूद्वीप को स्वर्ण कमल और उसके भी मध्य में स्थित सुमेरू को कणिका के रूप में चिंतन करें। फिर उसके उपर स्फटिक के श्वेत सिंहासन पर अपने को विराजमान होने का चितन करना चाहिये। "मैं कर्मों को भस्म कर डालने के लिये अपनी आत्माको प्रकाशमय-निष्कलंक बनाने के लिये आसीन हूं।" इस प्रकार का चिंतन करना पाथिवी धारणा है । __ आग्नेयी धारणाः-पृथ्वी धारणा के पश्चात् वहीं सुमेरू पर स्थित साधक अपनी नाभि के भीतर के स्थान में, हृदय को बोर उठे हुए और फैले हुए सोलह पत्तों वाले कमल का चिसन करें। प्रत्येक पत्ते पर पीत वर्ण से सोलह स्वर लिखे हों । कमल की श्वेत कणिका पर पीले वर्ण का "" लिखा हुमा सोचना चाहिये । इस कमल के ठीक उपर बो घा, आठ पत्तों वाला दुसरा मटिया रंग का कमल विकल्पित करना चाहिए। उसके प्रत्येक पत्ते पर काले रंग से लिखे हुए आठ कर्मों की कल्पना करना ।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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