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आत्मस्वरूप प्राप्त करने का सबसे सहज उपाय अनामत भाव है। हिन्दी अनुवाद सहित RISHIBIRTH
९ ७ विनय वश छे गुण सवे, ते तो मार्दव ने आयत्त रे । जेहने मार्दव मन वस्यं, तेणे सवि गुण-गण सम्पत्त रे ते.सं. ॥१६॥ आर्जव विण नवि शुद्ध छे, नवि धर्म आराधे अशुद्ध रे । धर्म विना नवि मोक्ष छे. तेणे क्रुजु भावी होय बुद्ध रे ते. सं. ॥१७॥ द्रव्योपकरण देहनां, वलि भक्त पान शुचि भाव रे।।
भाव शौच जिम नवि चले, तिम कीजे तास बनाव रे, ति. सं. ॥१८॥ आदि में धन-लुट जाने पर दिनरात आंसू बहाना, बात-बात में खीझना इष्ट वियोग दूसरा आतं ध्यान है। ३ शारीरिक और मानसिक चिंताओं में दिन-रात, रात-दिन धुलते रहना । रोगचिन्ता तीसग आर्तध्यान है। ४ अग्र सोच:-भविष्य की चिन्ता करना, इस साल मकान बनवाऊंगा, आते साल बच्चे का विवाह करूगा, इस व्यापार में नौकरी में लाभ मिलेगा? अथवा दान शील तप की आराधना से अगले भव में देव देबेन्द्र-चक्रवर्ती आदि पद मिलेगा भी या नहीं इस प्रकार अनेक बातों की उधेड़बुन में लगे रहना, चौथा आर्तध्यान है। आतेध्यान करने से पांचवे-छ? गुण स्थान तक निर्यच गति का बन्ध होता है ।
प्रश्न - भार्तध्यान से तो प्रायः कोई विरले ही मानव बचते हैं ? तो क्या सभी तिर्यच गति में जावेगे ? उत्तर-नहीं। आर्तध्यान के समय मानव का आयुष्य बन्ध अथवा मृत्यु हो तो वह तियंचगति में जाता है ।
रौद ध्यान:-मानसिक भयंकर विचारधारा को रौद्र ध्यान कहते हैं। इस के भी प्रमुख चार भेद हैं:-१ हिंसानुबन्धोः-अपने हाथों से अथवा दूसरे व्यक्ति को प्रलोभन देकर किसी जीव को सताना, उसे प्राणमुक्त कर बड़े प्रसन्न होना । यद्धादि की प्रशंसा करना पहला रौद्र ध्यान है । २ मृषानुबन्धी:-बड़ी सफाई के साथ झूठ बोल कर लोगों को बनाना, मन हो मन फलना, अपनी आत्मश्लाघा करना दूसरा रौद्र ध्यान । ३ चौर्यानुबन्धी:-डाका डालना, "राम राम जपना, पर यामाल अपना" आदि अनर्गल शब्दों का प्रयोग कर प्रसन्न होना, अपनी मुंछों पर बल देकर कहना कि डकैति का माल पचाना मदों का काम है । यह तीसरा रौद्र ध्यान है। ४ परिग्रह रक्षणानुबन्धी:अपने परिवार के मोह वश भयंकर पापारंभ से पंसा जोड़कर प्रसन्न होना । मिथ्या अभिमान करना । मैं नहीं रहंगा उस दिन सब को नानो दादो याद आते देर न लगेगी। यह चौथा रौद्र ध्यान करने से पांचवे गुण स्थान तक नरक गति का बन्ध होता है.। किसी जीव को छठ गुण स्थान में रोद्र ध्यान का पहला पाया होता है।
प्रश्न-छठे गुण स्थान में रौद्र ध्यान का पहला पाया होने से क्या वह जीव जीव नरक में जाता है ? उत्तर-नहीं। यहाँ रौद्र ध्यान आता अवश्य है किन्तु आयुष्य बन्ध नहीं होता, क्यों कि छठे गुण स्थान में देव गति का बंध' निणित सा है।
धर्मध्यानः-पार्मिक कार्यों में मानसिक अभिरुचि और प्रगति करना धर्मध्यान है। इसके चार प्रकार हैं। १ आज्ञा विचय:-सर्वश प्रदशित नय, प्रमाण, निक्षेप युक्त द्रव्य का स्वरूप सिद्धस्वरूप और निगोद का स्वरूप सत्य है, उस पर पूर्ण श्रद्धा रखना, वीतराग आज्ञा को स्यावाद निश्चय व्यवहार रूप