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कोई चोज कितनी भी प्यारी क्यों न हो, अगर यह आत्मसाक्षात्कार में बाधक हो तो उसे तुरन्त ही हटा
देनी चाहिये ।। हिन्यो अनुवाद सहित CCCARREARREARNERACK२ २९५
प्रमाण एक दर्पणः- आप दूसरे के आँख, कान, नाक और रूप रंग देख उसकी आलोचना, प्रत्यालोचना, समालोचना कर सकते हैं किन्तु अपनी देह और इन्द्रियों का स्वयं निरीक्षण करना आपके हाथ की बात नहीं | आपके और नाक की वनावट कैसी है ? इस का सही उत्तर पाने और अपने आत्मविश्वास के लिये आपको किसी दर्पण का सहारा लेना अनिवार्य है।
इसी प्रकार कई वक्ता और लेखक अपने प्रभावशाली भाषण और साहित्य द्वारा आपके हृदय को अपनी सहज ही आकर्षित कर लेते हैं। संभव है आपको भौतिक तड़क-भड़क और लौकिक अनेक सुविधाएं देख वक्ता और लेखक के मंतव्य-विचारधारा
और वेषभूषा की ओर लुढ़कते जरा भी देर न लगे, किन्तु इस भुल भुलेया का अन्त कहाँ और कैसे होता है, यह तो वही मानव जानते हैं, जो कि इसके पात्र बन चुके हैं ।
आज प्रत्यक्ष अनेक मानत्र पश्चात्य दूर देश के आचार-विचार, खान-पान, वेष-भूषा और साहित्य के मोह में अपनी दिव्य आत्मशक्ति-सत्स्वरूप- वीतराग मार्ग, आर्य संस्कृति हाथ धो, राह भटक गये हैं । उनको धूम्रयान, सुरा सेवन, रात्री भोजन, घूसखोरी, असत् भाषण, विश्वास-घात आदि असत व्यवहार करते मन में जरा भी संकोच नहीं होता, चोरी-जारी करने वाले व्यक्त अपने आपको बड़ चतुर समज मन ही मन फूले न समाते हैं।
यदि आप किसी से पूछे कि क्यों भाई ! आप ऐसा क्यों करते हैं ? शांति के लिये । अरे यह शांति...कै...सी । क्षणिक शांति के लिये स्थायी शांति से मुंह मोड़ना । इन सारे रोगों की और बुराइयों की जड़ एक ही है, वह है अध्यात्मिक वृत्ति का अभाव और आगम प्रमाण आदि साहित्य के पठन-पाठन का संकोच | प्रमाग नय, ध्यान-आदि एक ऐसा दिव्य दर्पण है कि उस ओर मानव की दृष्टि पड़ते ही उसे पता चल जाता है कि मैं कहाँ और किस ओर हूँ। प्रत्येक लेखक और वक्ता के उधेड़ बुन में राजमार्ग से जरा भी टस से मस न हुआ। अर्थात् वह सोचने लगा कि हाथी किस को मारेगा? यदि वह अपने निकट वाले को मारता है तो सर्व प्रथम उसका महावत मरेगा या दूर वाले को ही मारता है, फिर तो प्राणी मात्र की मृत्यु निश्चित है । अपने राम क्यों भागने लगे? में कदापि राजमार्ग से न हटगा । समयज्ञता के अभाव में उस दुराग्रही अपनी मान्यता के पगले छात्र को मदोन्मत्त गजराज ने एक क्षण में चीर कर फेंक दिया ।
सच है, इसी प्रकार आप मति, अभिमानी मानवों को तत्वज्ञान और सद्गुरु प्रदर्शित सन्मार्ग मिलना असंभव ही है । अतः वे मनुष्य भव हार जाते हैं ।