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________________ जो किसी को दुःख नहीं देता और सच का भला करता है, वह अत्यन्त सुखी रहता है। २९४BARE -RAKASHAN श्रीपाल रास की मंदता और अहंकार के त्याग से जो मंदबुद्धि स्त्री-पुरुष सद्गुरु के प्रवचनों पर विशुद्ध अटल श्रद्धा और सन्मार्ग का आचरण नहीं करते हैं, वे *आलसी गुरु शिष्य और तार्किक छात्र के समान अपना अनमोल मनुष्य भव हार जाते हैं। सुनार-बाबा! भले ही इस तुच्छ सेवक की प्रशंसा करें किन्तु मेरी जात और ये बनिये इस को कच्चा चबाने को मुंह फाडे तयार खड़े हैं । साधु--बेटा तू कहीं पागल तो नहीं हो गया। "अरे ! तेरा-मेरा दिल राजी तो क्या करेगा काजी ?" सोनी बाबा ! आप तो बड़े दयालु हैं, किन्तु मेरी दुकान का पुर्जा और यही कडं बनियों को बता उनके हृदय के विचार तो टटोल लें, आपको प्रत्यक्ष अनुभव हो जायगा कि वे कितने भले आदमी हैं । बाबा ! बाबा !! मैं आपके पर पड़ता हूं, आप इस दास की एक तुच्छ बात तो हसो में न उड़ाए', देर न करें आपका और मेरा एक अभिन्न स्नेह और धर्म प्रम है। कहीं इस में बलन पड़ जाय । सोनी की आँखों से टप टप आसू बहने लगे । वह गिड़गिड़ाकर साधु के पैरों में लौटने लगा। अपने प्यारे भक्त की आँखों में आँसू देख साधु भी रो पड़ा । उसे विवश हो सराफे की पारण लेनो पड़ी । वह जहाँ भी गया सभी ने एक स्वर से यही कहा कि " उपर बेल बूटा और नीचे पेंदा फूटा " यह तो कड़े पीतल के टुकड़े हैं ! ! साधु को सराफों की बात पर जरा भी विश्वास न हुमा । उसके हृदय में तो उस घुर्त सौनी ने ऐसी बात ठसा दी थी कि कई बृद्ध अनुभवी जवेरी व्यापारियों के लाख समझाने पर भी वह साधु टस से मस न हुआ। उसकी बुद्धि चकरा गई। वह घर का रहा न घाट का । अंत में उसे धन और घम दोनों से हाथ धोना पड़ा। इसी प्रकार यह आस्मा अनादिकाल से विषय वासना के मोहवश शृगार हास्य रसादि के साहित्य और उपदेशों से लमा, श्रीसद्गुरु के टकसाली वचनों की उपेक्षाकर अपने आत्मश्रेय से हाथ धो बैठता है। * दृष्टान्त:-एक झोपड़ी में एक गुरु-शिष्य रहते थे। दोनो इतने आलसो थे कि उनको बाहर से अपनी झोपडी में जाकर सोना भी पहाड़सा मालम होता था। एक दिन वे दोनों अपनी अपनी फटी गुदड़ी से मुह ढक कर झोपड़ी के बाहर ही पड़े रहे। शोतकाल था। पिछलो रात कड़ाके की ठण्ड में गुरु ने अपने चेले से पूछा-बेटा 1 हम कहाँ हैं ? बड़े जोरों से जाड़ा लग रहा है शिष्य ने उठने के आलस से झूठ ही कह दिया कि हम झोपड़ो के अंदर हैं। इतने में कहीं से एक कुतिया ठण्ड में ध्र जती हुई गुरुजी के पास जा बैठो, गुरुजी के हाथ में उसकी पुंछ आते ही उनने चेले से पूछा-बेटा ! क्या मेरे पूछ है ? चेला--गुरुजी ! पूँछ नहीं आपकी लंगोटी का पल्ला होगा पाप तो चुपचाप पड़े रहो। चेले उठ कर देखा नहीं कि वास्तव में गुरुजी पर क्या बीत रही है और न गुरुजी ने ही अपना मुंह खोल कर देखा कि मेरे पास क्या बलाय है अंत में वे दोनों आलसी गुरु-शिष्य ठण्ड सिकुड़ कर मर ही गये किन्तु झोपड़ी में न गये इसी प्रकार मानव अपने दुराग्रह और संप्रदायवाद की केवल बाते करना ही जानते हैं किन्तु वे तत्त्व खोजने का पुरुषार्थ न कर बेचारे भव-भ्रमण के चक्कर से मुक्त नहीं हो पाते हैं। ४ दृष्टान्तः-एक महावत ने कहा हटो ! हटो ! दूर हटो !! मेरा हायो मचल रहा है। बेचारी जनता अपने प्राण लेकर भागी किन्तु एक दर्शन शास्त्र का कीट विद्यार्थी "प्राप्तम् अप्राप्तम्" की
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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