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________________ अहंकार बन्ध है, निरहंकार मोक्ष हिन्दी अनुवाद सहित NIRAC -AE % २९३ हार जाते हैं:-क्या अपनी अपनी मान्यता और संप्रदायवाद की लंबी चौड़ी बातें कर, प्रमाद करने वालों का कभी कल्याण हुआ है ? नहीं । आत्म-कल्याण और सम्यक्त्व की विशुद्धि होती है, सद्गुरु के प्रवचनों पर सदा चिंतन, मनन और आचरण करने से । राग-द्वेष __ सोनीजी बाबा को दण्डवत् कर चलते बने। उसने घर जाकर समान नाप तौल को बड़ी सुहावनी एक शुद्ध स्वर्ण की और दूसरी शत-प्रतिशत पीतल को कड़ा जोड़ बनाकर तैयार की पश्चात एक दिन उसने साधु के हृदय पर अपनी छाप जमाने को एक चाल चली, वह विशुद्ध सोने की एक बड़ी सुन्दर बेल बूटे दार कडा जोड़ लेकर साधु के पास पहुंचा। उसने साधू को बड़े प्रेम से दण्डवत् कर मधुर शब्दों में कहा-बाबा ! ये आपके कई तयार है. इसे आप पहन कर देखले । साधु ने आज अपने जीवन में पहली बार ही सुवर्ण के कड़े पहने थे, वह हर्ष से उछल पड़ा। उसने खिलखिला कर हँसते हए सोनोजी को आशीर्वाद दिया बेटा तेरा कल्याण हो ! ___ सोनी-बाबा ! अभी तो इस कड़े जोड़ को उजालना शेष है। जब इन पर चमक आयेगी तब तो फिर नगर में आप ही आप देख पड़ेगें। आप भी जन्मभर याद करेंगे कि हां किसी भक्त ने कोई वस्तु बनाकर दी थी। साधु ने मुस्कराते हुए कड़े जोड़ सोनीजी को वापस लौटा दो। सुनार ने बड़े नखरे के साथ दो-चार पर पीछे हट, अपने दोनों कान पकड़ कर कहा-अरे......रे ...रे राम...राम बाबा ! आप यह क्या कर रहे हैं, " बिना विचारे जो करे सो पाछे पछिताय" । आप से इस दास ने पहले ही कहा था कि मेरे भाग्य में जस नहों अत: मेरो आप से सादर विनम्र प्रार्थना है कि नाप एक बार सराफ में जाकर व्यापारियों से इन कड़ों को ठीक तरह से परख कराले । यदि मेरो जात और सराफे को जरा भी ज्ञात हुआ कि मैंने आपको कुछ सेवा को है। तो फिर ये सब एक साथ मेरे पर टूट पड़े में । साधु ने कह-अरे ! सोनोजी, आप भी कसी बात करते हैं, आपकी बात सुन मुरदा भो हस पड़े सोनो ने साधु के चरणों में लौटते हुए कहा-बाना ! सगे बाप का भी विश्वास करना महा पाप है 1 आप एक नहीं दस दुकान पर जाकर इन कड़ों को अवश्य ही एक बार कसौटी पर चहा के देखलें । भोला बाबा अपने प्यारे भक्त की इच्छा को टाल न सका । वह अपने कड़े लेकर सराफ-बजार के इस छोर से उस छोर तक बीसों दुकान पर घूमा, जिसने भी जन कड़ों की मनमोहक बनाक्ट और विशुद्ध सोना देखा उसने प्रशंसा के पुल बांध दिये। अब तो साधु को सोनी की सेवा में जरा भी संशय न रहा। वह हंसते हंसते अपनी कुटिया पर लौटा । सोनीने उसके दर्शन होते ही आगे बढ़कर बाबा को प्रणाम कर पूछा-कहो बाबा क्या समाचार है ? वाह भई, वाह ! तेरा काम तो पूरा सो टंच है । बाबा ! कड़ों को अभो उजालना बाकी है। साधु ने कहा-लेजा ! भोर में जल्दी ले जाना । सोनी बाबा को प्रणाम कर घर लौटते समय मार्ग में मन ही मन फुला न समाया उसने अपनी मूछ पर बल देते हुए कहा--भगवान ! अच्छा काठ का उल्लु फैसा अब सो अपने राम के पौ बाहर पच्चीस हैं उसने घर आते ही शुद्ध स्वर्ण के कड़ों को चट से चुपचाप एक संदूक में दबा, उस के बदले दूसरे पीतल के कड़ों पर स्वर्ण का पानी पढ़ा या उन्हें बढ़िया चमका कर, वह उलटे पर बाबा के पास पहुंचा । साधु कड़ों की भड़कीली चमक-दमक देख आश्चर्य चकित हो गया । उसने अपने सेवक सोनी की पीठ ठोकते हुए उसकी निस्पृह सेवा और कला की प्रशंसा के पुल बांध दिये ।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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