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________________ तस्त्र और शांत मनुष्य के नजदीक, मैं और मेरा नहीं होता। २९२NNR KIRO श्रीपाल राम कई व्यक्ति सद्गुरु प्रवचन इस कान से सुन उस कान से निकाल देते हैं तो कई अपनी अपनी अकारण ही कपाय कर बैठते हैं। आप विचारे पामिये, कहो तत्त्व तणो किम अन्तरे । आलसुओ गुरु शिष्यनो इहाँ भाव जो मन वृतंन रे, म. सं. ॥११॥ बठर छात्र गज आवतां, जिम प्राप्त अप्राप्त विचार रे । करे न तेहथीं उग रे, तेम आप मति निरधार रे, ते. सं. ॥१२॥ आगमने अनुमान थी, वली ध्यान रसे गुण गेह रे । करे जे तत्त्व गवेषणा, ते पामे नहिं संदेह रे, ते. सं. ॥१३।। तत्त्व बोध ते स्पर्श छे, संवेदन अन्य स्वरूप रे। संवेदन वंध्ये हुई, जे स्पर्श ते प्राप्ति रूप रे, जे. सं. ॥१४॥ तत्व ते दशविध धर्म छे, खंत्यादिक श्रमण नो शुद्ध रे । धर्मनु मूल दया कही, ते खंति गुणो अविरूद्ध रे, ते. सं. ॥१५|| सुखों की चकाचौंध में भान न भूलो ! अपन साधु हैं। अपने को कड़े कंठी से क्या मतलव ! शिष्य को बहुत कुछ समझाया किन्तु उसके कान की जू तक न रेंगी । सत अकेले चल दिये । साधु बड़ा ठग चालाक था उसके पास कुछ समय में नगद नारायण का ढेर हो गया । उसने एक भक्त से कहा-सोनीजी! आप मुझे एक कड़े जोड बना दो। स्वर्णकार बड़ा धर्त था उस के मुंह से लार टपक पड़ी। सच है सुनार किसी का सगा नहीं होता है। उसने मुस्कराते हुए उपर के मन से कहा। बाबा ! मैं आप से धष्टता के लिये क्षमा चाहता हूं। यह काम मुन से न होगा। गुरु की एक दमड़ी भी खाना महा पाप है। आपका पैसा कच्चा पारा है। मैं बालबच्चे दार हूं। साधु-सोनीजी ! धबड़ाओं मत । आप पर मुझे पूर्ण विश्वास है, तब तो आप से कहा । सुनार-बाबा ! आपकी इस कृपा के लिये मैं बड़ा आभारी हूं। मैं तो यह काम कदापि नहीं करूगा । बाजार बहुत लम्बा चौड़ा पड़ा है । आपका जो चाहे उससे आप कड़े बनवालें । यदि आपके विशेष आग्रह और प्रेम से मैं कड़े बना भी दूंगा तो मेरे भाग्य में यश नहीं। मेरी जात और सराफा बाजार मेरे विरुद्ध है । अत: वह आपको बहकाए बिना न रहेगा। संभव है आप भी उनके गाये गाये मुझ पर चिड़ जाए और शाप दे दें फिर तो भला मैं गरीब सुनार घर का रहा न घाट का असमय में मारा जाऊ । ठग-साप्नु सोनीजी की लच्छेदार चिकनी चुपड़ी बातें सुन मन्त्र-मुग्ध हो गया। उसने धूर्त सोनी की पोठ थपथपा कर कहा-बेटा ! दुनिया दीवानी है, उससे हमें क्या ? "बके उसे बकने दो, अपना काम धकने दो।" साधुने तो सोने का पासा सुनार के हाथ में रख ही दिया । तुझे तो यह काम ही पड़ेगा ।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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