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जब तक में और मेरा का बुखार चढ़ा हुआ है तब तक शांति नहीं मिल सकती । हिन्दी अनुवाद सहित १२
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तत्त्व कहे पण दुल्लही, सहणा जाणो संत रे | कोई निज मति आगल करे, कोई डावा डोल फिरंत रे को . सं. ॥ १० ॥
युगलिक क्षेत्रों में तो साधु-साध्वी का सत्समागम हैं नहीं । अन्य क्षेत्रोंमें किसी दिन कोई संत मुनिराज भूले-भटके आ निकलते हैं तो आप पर आलस, मोह अवज्ञा आदि विघ्न ( * तेरह काठिये ) सद्गुरु की छाया तक पढ़ने नहीं देते हैं। यदि आपने किसी प्रकार गुरु के निकट पहुंचने का साहस भी किया तो वहां व्याख्यान में आपको निद्रा सतायेगी, आपका चंचल मर्कट मन चारों ओर भटकने लगेगा | आपको प्रवचन श्रवण में जरा भी आनन्द न आयेगा क्यों कि आप अनेक जन्मों से शृंगारादि विपयों के वातावरण में घुले मिले हैं। अतः तस्वज्ञान आपके कानों पर पड़ते ही आपके विचार बड़े डांवाडोल हो उठेंगे। श्रीवीतराग देव के तत्त्वज्ञान और सद्गुरु की शिक्षा पर ee श्रद्धा और अभिरुचि होना बड़ी दुर्लभ है। संभव है तत्त्वज्ञान और श्रद्धा की निर्बलता के कारण आप एक ठग साधु के समान आत्मश्रेय के लाभ से हाथ मलते
रह जाय ।
* तेरह काठिया:- १ आलसः - प्रवचन सुनने जाना है, अच्छा कल चलेंगे । इसी प्रकार प्रतिदिन कल का अन्त नहीं । २ मोह: - बच्चे को कौन संभालेगा ? दवा लाना है । ३ अवज्ञा:प्रवचन सुनें या अपना पेट पालें । ४ अभिमान:- बिना पावों नियंत्रण के कौन जाए। ५ कोषःसट्टा सुरा आदि व्यसनों के त्याग का नाम सुन खीझना । ६ प्रमादः - व्यर्थ की भटई में समय खोना ७ भयः - मुनिराज के पास जाऊंगा तो वहां कुछ सौगन लेना पड़ेगें । ८ शोकः – किसी की मृत्यु का बहाना कर धर्म ध्यान से जी चुराना । ९ अज्ञान:- प्रवचन, धर्म ध्यान के समय लज्जा से इधर-उधर मुंह छिपाना । १० विकथा: - राष्ट्रिय गप सप स्त्रियों के नख-शिख, खानपान राजा महाराजाओं की भली बुरी चर्चाओं में उलझ कर धर्म ध्यानादि का सुअवसर हाथ से खोना । ११ कंजूसी : - व्याख्यान में जाऊंगा तो वहाँ पानड़ी मांडते समय शरम में पड़ना पड़ेगा । १२ कौतूक :- मन्दिर उपाश्रय जाते समय सड़क के चौराहे पर खेल तमाशे में भटक जाना । १३ विजयः - कपड़े सिलाना, जमाईजी को बुलाना, मजदूरों से काम लेने की घट-भंजन में गुरु दर्शन, प्रवचन श्रवण आदि शुभ अवसर को हाथ से गंवाना ।
x साधु का दृष्टान्तः - एक संत अपने शिष्य के साथ पैदल भ्रमण करते हुए, एक नगर में आये | महात्मा अच्छे विद्वान पहुंचे हुए थे। उनकी सेवा में प्रतिदिन हजारों भक्त स्त्री-पुरुष आने लगे। भक्तों के वस्त्राभूषणों की तड़क-भड़क देख उनके चेले का मन चल-विचल होने लगा । संत उसी समय इस बात को ताड़ कर वहाँ से आगे चलते बने। किन्तु वेला उनके साथ चलने में जरा आना-कानी करने लगा। उसने कहा - गुरुजी । आप मुझे सोने के कड़े पहनाको तो मैं साथ चलू' ? नहीं तो आप पधारो राम राम । ठण्डे ठण्डे । संत ने मुस्करा कर कहा- बेटा! मौतिक