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________________ निकट संपर्क से पराया भी अपना लगता है और निरंतर दूर रहने से अपना भी पराया लगता है। २८८ HASIR AL भोपाल रास यदि आप चुल्लग, पासग आदि दस प्रकार के *दृष्टान्तों का चिंतत-मनन करेंगे तो सचमुच आपकी अन्तरात्मा तिलमिला उठेगी । पानवमत का यह रहलय नहीं कि आप जीवन भर केवल रोटी और कपड़ों से ही लड़ते रहें । अपनी विशुद्ध आत्मा को समझ, उसमें रमण करो। आत्म-स्वभाव के विज्ञान को समझे बिना आपको मानसिक शांति मिलना असंभव है ।। मानों, आपको प्रबल पुण्योदय से उत्तम कुल और लंबी आयुष्य भी मिली तो क्या आप स्वस्थता और आँख, कान, नाक आदि की अपूर्णता से अपना-पराया भला कर सकते हैं ? नहीं । स्वास्थ्य, शारीरिक रूप-सौन्दर्य और सद्गुरु की सेवा के बिना मानव जीवन भव-वृद्धि का ही कारण है । सद्गुरु का सत्संग भाग्य से ही तो किसी क्षेत्र में मिलता है। * दृष्टान्त पहला:--एक चक्रवर्ती राजा ने एक भिक्षुक पर प्रसन्न हो अपने छः खण्ड के नागरिकों को आदेश दिया कि वे उस भिक्षक को प्रतिदिन एक हो घर से भरपेट भोजन दें। भोजन का आरंभ सर्व प्रथम मेरे राजप्रासाद से ही होगा । उस भिक्षक को कई नगर-उपनगरों में भोजन करते वर्षों बीत गये किन्तु उसे एक दिन भी चक्रवर्ती राजा के राजप्रासाद सा स्वादिष्ट भोजन न मिला । अतः वह भिक्षुक चाहता था कि मुझे फिर एक बार चक्रवर्ती के यहां भोजन करने का अवसर हाथ लगे। किन्तु अभी तो उसे शेष क्रमशः संपूर्ण छ: खण्ड के नागरिकों के यहां भोजन करना अनिवार्य है। श्री जिनेन्द्र भगवान का सिद्धान्त है कि संभव, है उस भिक्षुक को किसी विशेष प्रसंग और प्रार्थना से चक्रवर्ती के यहां भोजन मिल सकता है। किन्तु जो व्यक्ति प्रमाद-वश व्यर्थ ही अपना मनुष्य भव गवां देते हैं उन्हें पुन: मनुष्य भव हाथ लगना बड़ा ही दुर्लभ है। दृष्टान्त दूसरा:-एक जुआरी के पास सिद्ध पासे थे अत: कोई भी खिलाड़ी उसे जीत नहीं सकते थे। श्री जिनेन्द्र भगवान का सिद्धान्त है कि किसी एक विशेष सिद्धि से उस खिलाड़ी को जीतना कोई कठिन बात नहीं किन्तु प्रमाद-वश व्यर्थ ही खोया हुआ मनुष्यभव पुन: हाथ लगना ही दुर्लभ है। दृष्टान्त तीसरा:-इस भूतल पर अनेक प्रकार के धान्य पैदा होते हैं । उन समस्त छान्यों के संमिश्रण में एक मुट्ठी भर सरसों के दाने डाल कर, उसे ठोक तरह से हिला दें। फिर पाप किसी एक अति वृद्धा मंद-लोचना महिला से कहें कि माताजी! आप इस धान्य के ढेर में से अति शीघ्र इन सरसों के दानों को अलग कर दें। क्या वह अंघी बुढ़िया इस कार्य में सफल हो सकेगी? कदापि नहीं। श्री जिनेन्द्र भगशन का सिद्धान्त है कि उस धान्यराशि में से किसी विशेष प्रयोग द्वारा सरसों के दाने सहज ही अलग हो सकते हैं किन्तु जो व्यक्ति प्रमादवश व्यर्थ ही अपना अनमोल समय गंवा देते हैं, उन्हें पुन: मनुष्य भव हाथ लगना बड़ा ही दुर्लभ है । दृष्टान्त चौथा-एक राजा को अपने किसी एक गुप्तचर से ज्ञात हुआ कि उसका बेटा, उसे मारकर राज्य लेना चाहता है। अत: राजा ने अपने प्राण बचाने के लिये, राजकुमार को बुला कर कहा-बेटा ! अपने घर की यह रीति है कि जो व्यक्ति अपनी राजसभा में लगे एक सौ
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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