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सरसाह में एक चीजली तो है, जो लंगड़े लूले को भी कर्मण्य बना देती है। हिन्दी अनुवाद सहित **-*- * -
- *र २५ प्रजापाल – संकोच न करो। मैं कह रहा , तुम निर्भय अपनी कामना प्रकट करो, जो मांगोगी वही पाओगी। राजा को रंक और रंक को श्रीमन्त बनाना मेरे हाथ की बात है | आज तुम लोग सुख-शांति का अनुभव कर रहे हो यह किमका प्रताप है ? सारे सुख-दुःख मेरी कृपा पर ही निर्भर हैं। मेरी दृष्टि से गिरे हुए व्यक्ति की कोई छाया में भी खड़ा नहीं रह सकता है ।
सुन्दरी कहे सांचु पिता रे, रहमां किश्यो मंदेह । जग जीवारण दोय छे रे, एक महिपति दृज मेह रे॥१३॥ नृप० साचुं माचुं सहु कहे रे, सकल ममा तेणी वार । ए सुग्गुन्दरी जे हवी रे, चतुर न को संसार ||१४ नृप
सुरसुन्दरी - पिताजी, आपका कहना ठीक है। इसमें तनिक मात्र भी मंशय नहीं । वास्तव में वर्षा और राजा ही जगत् की इच्छा पूर्ण करने वाले हैं। राजसभा के सदस्य - धन्य बड़ी बाई साब, सचमुच यह सब महागज प्रजापाल का ही प्रताप है।
गजा पण मन रंजियो रे, कहे सुन्दरी वर मांग । बंछिन वर तुज मेलगी रे, देऊँ सयल सौभाग रे ॥१५॥ वत्म. तिहां कुरु जंगल देश थी रे, आव्यो अवनिपाल । सभा मांहे शोभे घणों रे, यौवन रूप स्माल रे ॥१६॥ नृप० शंखपुरी नगरी धणौ . रे, अरिदमन तम नाम । ते देखी सुरसुन्दरी रे, अगे उपज्यो काम रे ॥१७|| वत्स० पृथ्वीपति तस ऊपरे रे, परखी ताप मनेह । तिलक करी अरिदमन ने रे, आपी अंगजा तेह रे ॥१८॥ वत्स० गस रच्यो श्रीपाल नो रे, तेहनी बीजी दाल । विनय कहे श्रोता घरे , होजो मंगल माल रे ||१९|| वत्स
मान बढ़ाई की बाते सुन महाराज प्रजापाल ने कुछ मुस्करा कर कहा - मुरसुन्दरी ! बेटी मांगो, तुम्हें कौनसा वर दे सौभाग्यवतीं कर ?