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स्त्री शिक्षा देने में पिता के समान है। २४ * * * * ** *** * श्रीपाल राम
सुगुण समस्या पुरजो रे, भूपति कहे धरी नेह । अर्थ उपाई अभिनको रे, पुण्ये पामिजे एहरे । ०। वत्स सुरसुन्दरी कहे चातुरी रे, धन योवन वर देह । मन वल्लभ मेलाबड़ो रे, पुण्ये पामिजे एह रे ॥८॥ वत्स मयणा कहे मति न्याय नी रे, शीयल सु निर्मल देह । संगति गुरु गुणवंतनी रे, पुण्ये पामिजे एह । ॥९॥ नृप०
प्रजापाल सुरसुन्दरी ! पुण्योदय से किन किन वस्तुओं की प्राप्ति होती है ? पिताजी ! धन, यौवन, शारीरिक आरोग्य, रूप सौन्दर्य और मन-पसन्दभार पुण्योदय से ही प्राप्त होता है।
मयणासुन्दरी-पिता श्री ! न्याय सम्पन्न धनोपार्जन की बुद्धि, प्राण-प्रण से ब्रह्मचर्य पालन की दृढ़ प्रतिज्ञा, गुणानुराग, सुदेव, गुरु, धर्म और सत्संग पुण्योदय से ही प्राप्त होना है।
'जो करणी अन्तर बसे, निकसे मुख की बाट' मानव के सत्-असत् विचार एवं आचरण का मापदण्ड है प्रश्नोत्तर कला । प्रश्न एक है किन्तु दोनों 'राजकन्याओं के जीवन का मोड़' भिन्न भिन्न है । सुरसुन्दरी भौतिक पदार्थों को साध्य मानती है तो मयणासुन्दरी उसे साधन माननी है।
इण अवसर भूपति, भणे रे, आणी मन अभिमान । हूँ त्रुट्यो तुम उपरे रे, देॐ वंछिन दान रे० ॥१०॥ वत्स हूँ निर्धन ने धन देऊं रे, करूं रंक ने राय । लोक सकल सुख भोगवे रे, पामी मुज पसाय रे ॥११॥ वत्स सकल पदारथ पामिये २ मे तूठे जगमांहि । में रूठे जग रोलिये रे, उभो न रहे कोइ छांहि रे ॥१२॥ वत्स
प्रजापालधन्य है सुरसुन्दरी, मयणासुन्दरी ! बड़े ही हर्ष की बात है कि तुमने बचपन में ही इतनी विशेष योग्यता प्राप्त कर अपने वंश का गौरव बढ़ाया । आज मेरी आत्मा बड़ी प्रसन्न है, हृदय प्रफुल्लित हो रहा है । कहो तुम्हे क्या पारितोषिक दं! दोनों कन्याएं मुस्करा कर चुप रह गई ।